जो पाठक क्षत्रियों के बाद का इतिहास पढ़ने में रुचि रखते हैं, वे आदि पर्व का यह अंश देखें:
'इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर देने वाले जमदग्नि के पुत्र महेन्द्र पर्वत पर, जो सबसे उत्तम पर्वत था, तपस्या में लीन हो गए।¹ जब उन्होंने धरती को क्षत्रिय-विहीन कर दिया था तो क्षत्रियों की विधवाएं ब्राह्मणों के पास आईं और उनसे संतति की याचना की। तब धर्म परायण ब्राह्मणों ने निष्काम भाव से उन स्त्रियों के साथ सहवास किया जो बाद में गर्भवती हो गईं और उन्होंने वीर क्षत्रिय लड़के-लड़कियों को जन्म दिया, जिससे क्षत्रिय जाति आगे भी रहे। इस प्रकार जो क्षत्रिय उत्पन्न हुए, वे क्षत्रिय स्त्रियों से ब्राह्मणों के जाए हैं, उनकी संख्या बढ़ती गई। फिर ब्राह्मणों से हीन चार वर्णन बने।'
इन दोनों जातियों के बीच इस शत्रुता में एक-दूसरे को चुनौतियां दी जाती रहीं, जिससे यह प्रकट होता है कि दोनों पक्षों में क्रोधाग्नि जल रही थी। राजा निमि द्वारा ब्राह्मणों को अपने रथ में जोतना और घोड़ों की तरह उनसे अपना रथ खिंचवाना, इससे यह प्रकट होता है कि क्षत्रिय ब्राह्मणों का निरादर करने के लिए कितने कृतसंकल्प थे। कृतवीर्य अर्जुन ने ब्राह्मणों को जो चुनौती दी, उससे पता चलता है कि वह ब्राह्मणों को नीचा दिखाना चाहते थे। ब्राह्मण भी ऐसी चुनौती देने में नहीं चूकते थे। उन्होंने भी क्षत्रियों
1. म्यूर, खंड 1, पृ. 451-452
को चुनौतियां दीं कि वे ब्राह्मणों को उत्तेजित न करें। यह ब्राह्मणों के दूत वायु के उस कथन से स्पष्ट है जो उन्होंने अर्जुन कृतवीर्य से संवाद के समय तब कहा था, जब उसने ब्राह्मणों को चुनौती दी थी। वायु ने अर्जुन को बताया कि अत्रि ने समुद्र में मूत्र त्याग कर उसका जल किस प्रकार खारा कर दिया था किस प्रकार दंडकों को ब्राह्मणों ने राज सिंहासन से उतार दिया था। अकेले ब्राह्मण और्व ने किस प्रकार तालजंघ के सभी क्षत्रियों का संहार कर दिया था। ब्राह्मणों की मारक शक्ति क्षत्रियों से ही नहीं, बल्कि देवों से भी श्रेष्ठ है। वायु अर्जुन से देवताओं पर ब्राह्मणों की विजय का वर्णन करते हैं। उन्होंने बताया कि वरुण किस प्रकार सोम की पुत्री भद्रा और अंगिरस कुल के उतथ्य ब्राह्मण की पत्नी का हरण कर ले गया। किस प्रकार उतथ्य ने अपने शाप से धरती पर अकाल ला दिया था और किस प्रकार वरुण को उतथ्य के सामने झुकना पड़ा तथा उसकी पत्नी लौटानी पड़ी। वायु ने बताया कि किस प्रकार एक बार देवों पर असुरों ने विजय प्राप्त कर ली, असुरों और दानवों ने मिलकर देवों को सभी आहुति कर्म से वंचित कर दिया, उनके गौरव को विनष्ट कर दिया, तब वे ब्राह्मण अगस्त्य के पास गए और उन्होंने संरक्षण देने के लिए प्रार्थना की, और किस प्रकार अगस्त्य ऋषि ने दानवों को स्वर्ग और पृथ्वी से निकाल कर दक्षिण की ओर खदेड़ दिया और देवताओं को उनका राज्य वापस दिलाया। वायु ने अर्जुन को यह भी बताया कि एक बार जब आदित्यगण यज्ञ कर रहे थे और उनका खल नामक दानवों के साथ संघर्ष हुआ जो हजारों की संख्या में उनका वध करने आए थे। किस प्रकार आदित्यगण इंद्र के पास पहुंचे, और इंद्र ने दैत्यों के साथ स्वयं युद्ध किया किंतु फिर भी आदित्यों को विजय नहीं दिला सके तो वे ब्रह्मऋषि वशिष्ठ से सहायता लेने गए, तब किस प्रकार वशिष्ठ ने आदित्यों पर दया करके दानवों को जीवित भस्म किया और आदित्यों की रक्षा की। उन्होंने अर्जुन को फिर बताया कि किस प्रकार दानवों ने देवों के साथ युद्ध किया और किस प्रकार भयंकर अंधेरे में घेरकर देवों का वध किया गया। किस प्रकार देवों ने ब्राह्मण अत्रि से कहा कि वह चंद्रमा का रूप धारण करके सूर्य का प्रकाश उत्पन्न कर दें। अत्रि ने ऐसा ही किया और दानवों से देवों की रक्षा की। ब्राह्मणों की प्रभुता के बारे में अंतिम प्रकरण वायु ने अर्जुन को बताया कि किस प्रकार च्यवन ऋषि ने इंद्र को इस बात के लिए विवश किया कि अश्विनी पुत्रों को समकक्ष स्वीकार किया जाए और समानता के प्रतीक के रूप में उनके साथ सोमपान किया जाए। और जब इंद्र ने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो उसे धरती और आकाश दोनों स्थानों से बहिष्कृत होना पड़ा। और इस प्रकार उन्होंने मद नाम के राक्षस की रचना की और देवों को इंद्र सहित उसके मुख में धकेल दिया। फिर किस प्रकार च्यवन ने इंद्र को यह स्वीकार करने के लिए विवश किया कि अश्विनी समान पद के अधिकारी हैं, उनके साथ इंद्र को सोमपान कराया और अंत में किस प्रकार इंद्र ने च्यवन के सम्मुख आत्मसमर्पण किया।
वायु ने ब्राह्मणों की प्रभुता के बारे में केवल यही नहीं कहा, उन्होंने और भी काफी कुछ कहा। प्रत्येक बार उसने अर्जुन को एक उदाहरण बताया, जिसमें ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन था, और अंत में अर्जुन से एक प्रश्न पूछा 'क्या तुम बता सकते हो कि कौन क्षत्रिय उस ब्राह्मण से श्रेष्ठ है, जिसका प्रसंग दिया गया है? सोचकर ऐसे क्षत्रिय का नाम बताओ जो श्रेष्ठता में उनके समान हो। मुझे बताओ कि कोई क्षत्रिय क्या अत्रि की समानता कर सकता है। '
ब्राह्मणों और क्षत्रियों के बीच यह वर्ग संघर्ष युगों-युगों तक चलता रहा होगा। इस पृष्ठभूमि में इस वर्ग-युद्ध के प्रति मनु का दृष्टिकोण बहुत ही विचित्र लगता है।
मनुस्मृति के निम्नलिखित श्लोकों पर विचार कीजिए:
4.135. जो समृद्धिशाली होना चाहता है उसे चाहिए कि वह क्षत्रिय, सांप और विद्वान ब्राह्मण की कभी भी उपेक्षा न करे, चाहे वह कितने ही निर्बल क्यों न हों।
4.136. क्योंकि ये तीनों अनाहत होने पर उसे पूर्ण रूप से विनष्ट कर देंगे, अतः बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह कभी इनकी उपेक्षा न करे।
10.322. ब्राह्मण के बिना क्षत्रिय संपन्न नहीं हो सकता, क्षत्रिय के बिना ब्राह्मण समृद्ध नहीं होता। ब्राह्मण और क्षत्रियों का निकट संबंध हैं। इसलिए वे इस लोक और पर - लोक में समृद्ध होते हैं।
यहां यह स्पष्ट है कि मनु इन दोनों के बीच मेल करा देना चाहता है। मनु किसके विरुद्ध ब्राह्मणों और क्षत्रियों को आपस में मिलाना चाहता है? क्या यह प्रयास इसलिए था कि ये दोनों पिछली शत्रुता को भूल जाएं या इसलिए था कि किसी अनुचित उद्देश्य की पूर्ति के लिए ये किसी षड्यंत्र में परस्पर मिल जाएं। वे क्या परिस्थितियां थीं, जिन्होंने मनु को इस बात के लिए विवश किया कि वे ब्राह्मणों को यह सलाह दें कि वे क्षत्रियों के साथ युगों पुराने अपने वैमनस्य को भूल जाएं और सहायता के लिए आगे आएं। ये परिस्थितियां बहत ही कठिन और अनिवार्य रही होंगी, क्योंकि दोनों वर्गों के बीच मैत्री का कोई आधार नहीं बचा था। ब्राह्मणों ने क्षत्रियों की जी भर के निंदा की। उनकी प्रतिष्ठा को खुलेआम यह कहकर चोट पहुंचाई कि क्षत्रिय ब्राह्मणों की अवैध संतान हैं, जो उन्होंने क्षत्रिय विधवाओं से जन्मी है। क्षत्रियों की भावनाओं को आघात पहुंचाने के लिए ब्राह्मणों ने क्षत्रियों से यह भी कहलवा लिया कि वीरता में भी ब्राह्मण क्षत्रियों से श्रेष्ठ हैं, जैसा कि भीष्म से कहलाया गया:
ब्राह्मणों की शक्ति देवताओं का भी संहार कर सकती है जो इस संसार के स्वामी कहे जाते हैं।¹ कोई ब्राह्मण चाहे चन्दन का तिलक लगाता हो, अथवा कीचड़ में सन
1. म्यूर, खंड 1, पृ. 473-474
गया हो, चाहे वह भोजन करता हो या व्रत रखता हो, रेशमी टाट लपेट कर रहता हो या मृग चर्म धारण किए हुए हो, वह सांसारिक को दैविक और दैविक को सांसारिक बना सकता है, क्रुद्ध होने पर वह नई सृष्टि कर सकता है। ब्राह्मण देवाधिदेव हैं और कारणों के कारण हैं। अज्ञानी ब्राह्मण भी देवता है और ज्ञानी ब्राह्मण तो देवताओं से बढ़कर हैं, जैसे विशाल महासागर है।
इन सब तथ्यों से यह बड़ा ही रहस्यपूर्ण लगता है कि ब्राह्मणों का अचानक पतन, क्षत्रियों को जीतने के लिए उनका यह असफल प्रयास क्योंकर हुआ ? इस रहस्य का कारण क्या हो सकता है ?