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अस्पृश्यता और अराजकता
बहुत से लोगों को इस बात पर आश्चर्य होता है कि जिस व्यवस्था में इतनी ढेर सारी असमानताएं हों, वह अब तक जीवित कैसे रही है। कौन से ऐसे तत्व है, जो इसे पुष्ट करते हैं ? जो तत्व इस व्यवस्था को पुष्ट करते आएं हैं, उनमें सबसे महत्वपूर्ण तत्व है हिंदुओं का इसे हर कीमत पर बनाए रखने का संकल्प।
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अस्पृश्यता - उसका स्रोत
ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अस्पृश्यों की दयनीय स्थिति से दुखी हो यह चिल्लाकर अपना जी हल्का करते फिरते हैं कि 'हमें अस्पृश्यों के लिए कुछ करना चाहिए।' लेकिन इस समस्या को जो लोग हल करना चाहते हैं, उनमें से शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो यह कहता हो कि 'हमें स्पृश्य हिंदुओं को
रानाडे, गांधी और जिन्ना - लेखक - डॉ. भीमराव अम्बेडकर
18 जनवरी, 1943 को पूना के गोखले मेमोरियल हॉल में
महादेव गोविंद रानाडे
के 101 वें जयंती समारोह में दिया गया भाषण
1943 में पहली बार प्रकाशित
1943 में संस्करण का पुनर्मुद्रण
प्रस्तावना
पूना की दकन सभा ने मुझे स्वर्गीय न्यायमूर्ति महादेव गोविंद रानाडे के
1955 में पहली बार प्रकाशित 1955 में संस्करण का पुनर्मुद्रण
प्रस्तावना
भाषायी राज्यों का निर्माण आज एक ज्वलंत प्रश्न है। मुझे खेद है कि बीमारी के कारण मैं उस बहस में भाग नहीं ले सका, जो संसद में हुई थी । न ही मैं उस अभियान में सम्मिलित हो सका, जो देश में लोगों ने अपनी-अपनी विचारधारा के समर्थन में चलाया था।
भाषावार प्रांत आयोग को प्रस्तुत वक्तव्य
1948 में पहली बार प्रकाशित, 1948 में संस्करण का पुनर्मुद्रण
महाराष्ट्र : एक भाषावार प्रांत
भाग I
भाषावार प्रांतों के निर्माण की समस्या
भाषा के आधार पर प्रांतों के पुनर्गठन के सवाल से न केवल दलीय पूर्वाग्रहों और दलीय हितों से उत्पन्न अनेक प्रकार के वाद-विवाद