Phule Shahu Ambedkar फुले - शाहू - आंबेडकर
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भाषावार राज्यों के संबंध में विचार - डॉ. भीमराव अम्बेडकर

Thoughts on Linguistic States Book by Dr Bhimrao Ramji Ambedka1955 में पहली बार प्रकाशित 1955 में संस्करण का पुनर्मुद्रण प्रस्तावना      भाषायी राज्यों का निर्माण आज एक ज्वलंत प्रश्न है। मुझे खेद है कि बीमारी के कारण मैं उस बहस में भाग नहीं ले सका, जो संसद में हुई थी । न ही मैं उस अभियान में सम्मिलित हो सका, जो देश में लोगों ने अपनी-अपनी विचारधारा के समर्थन में चलाया था।

दिनांक 2023-05-15 04:32:19 Read more

महाराष्ट्र : एक भाषावार प्रांत - डॉ. भीमराव अम्बेडकर

Maharashtra as a Linguistic Province - Dr Bhimrao Ambedkarभाषावार प्रांत आयोग को प्रस्तुत वक्तव्य 1948 में पहली बार प्रकाशित, 1948 में संस्करण का पुनर्मुद्रण महाराष्ट्र : एक भाषावार प्रांत भाग I भाषावार प्रांतों के निर्माण की समस्या      भाषा के आधार पर प्रांतों के पुनर्गठन के सवाल से न केवल दलीय पूर्वाग्रहों और दलीय हितों से उत्पन्न अनेक प्रकार के वाद-विवाद

दिनांक 2023-05-11 11:49:09 Read more

जातिप्रथा और उन्मूलन

jati Pratha aur Unmulan - Answer given to Mahatma Gandhi - dr bhimrao ambedkarजातिप्रथा और उन्मूलन - महात्मा गांधी को दिया गया उत्तर - लेखक - डॉ. भीमराव अम्बेडकर जातिप्रथा - उन्मूलन द्वितीय संस्करण की प्रस्तावना     लाहौर के जातपांत तोड़क मंडल के लिए जो भाषण मैंने तैयार किया था, उसका हिन्दू जनता द्वारा अपेक्षाकृत भारी स्वागत किया गया। यह भाषण मैंने मुख्य रूप से इन्हीं लोगों के लिए

दिनांक 2023-05-03 08:42:34 Read more

जातिप्रथा और धर्म परिवर्तन - डॉ. भीमराव आम्बेडकर

jaati Pratha aur Dharm Parivartan- Dr Babasaheb Ambedkar    हिंदू समाज की वर्तमान उथल-पुथल का कारण है, आत्म-परिरक्षण के भावना। एक समय था, जब इस समाज के अभिजात वर्ग को अपने परिरक्षण के बारे में कोई डर नहीं था। उनका तर्क था कि हिंदू समाज एक प्राचीनतम समाज है, उसने अनेक प्रतिकूल शक्तियों के प्रहार को झेला है, अतः उसकी सभ्यता और संस्कृति में निश्चय ही कोई अंतर्निहित

दिनांक 2023-05-03 06:24:51 Read more

जातिप्रथा का अभिशाप - डॉ. भीमराव आम्बेडकर

Jati Pratha ka abhishap - Dr Babasaheb Ambedkar    जैसा कि मैं प्रथम निबंध (‘भारत में जातिप्रथा') में बता चुका हूं, कोई जाति एकल संख्या में नहीं हो सकती। जाति केवल बहुसंख्या में ही जिंदा रह सकती है। वास्तव में तो जाति समूह का विखंडन करके ही बनी रह सकती है। जाति की प्रकृति ही विखंडन और विभाजन करना है। जाति का यह अभिशाप भी है, लेकिन फिर भी कुछ लोग ही जानते

दिनांक 2023-05-03 04:03:26 Read more

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