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विभिन्न वर्ग : उनकी उत्पत्ति और कर्म - अराजकता कैसे जायज है ? (भाग - 2) - डॉ. भीमराव आम्बेडकर

विभिन्न वर्ग : उनकी उत्पत्ति और कर्म

    1. यह ब्रह्मांड तम पुंज के रूप में, अज्ञात, लक्षणहीन, प्रमाणादि तर्कों से परे, अज्ञेय, पूर्ण निमज्जित था, जैसे प्रगाढ़ निद्रा में हो- (मनु 1.5.)

    2. तब स्वयंभू जो अगम थे, किंतु आकाशादि महाभूतों को प्रकट करते हुए गोचर रूप में दुर्दम्य सृजनशक्ति सहित हो, अंधकार को दूर करते हुए प्रकट हुए- ( वही 1.6.)

    3. तीनों लोकों की संवृद्धि के लिए ब्रह्मा ने अपने मुख, बाहु, उरु और चरणों से क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की सृष्टि की- (वही 1.31.)

    4. महातेजस्वी ब्रह्मा ने संपूर्ण सृष्टि की रक्षा के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के अलग-अलग (कर्म) व्यवसाय निर्धारित किए- (वही 1.87.)

    5. ब्राह्मणों के लिए उन्होंने (वेदों को) पढ़ना और पढ़ाना, अपने तथा दूसरों के हित के लिए यज्ञ करना और कराना, दान लेना और दान देना, कर्म निर्धारित किए - ( वही, 1. 88. )

    6. उन्होंने प्रजा की रक्षा करना, दान देना, यज्ञ करना, वेदों का अध्ययन करना, विषयों में आसक्ति न रखना, यह क्षत्रियों के कर्तव्य बताए हैं- (मनु, 1.89.)

    7. उन्होंने पशुपालन, दान देना, यज्ञ करना, (वेद) पढ़ना, व्यापार करना, ऋण देना और खेती करना ये वैश्यों के कर्तव्य बताए (वही, 1.90.)

    8. ब्रह्मा ने शूद्र के लिए एक ही कर्तव्य निर्धारित किया अर्थात् इन अन्य तीन वर्णों की अत्यंत विनम्रतापूर्वक सेवा करना - (वही, 1.91.)

    9. विद्यार्थी, प्रशिक्षणार्थी, वेतन देकर नियुक्त सेवक और चौथे अधिकारी व्यक्ति, इन सभी को श्रमिक समझना चाहिए। जो किसी के घर में जन्म प्राप्त करते हैं, वे दास होते हैं- ( नारद, 5.3.)

    10. ऋषियों ने कानून के आधार पर पांच वर्ग के सेवक बताए हैं, इनमें चार वर्ग के सेवक वे हैं जिनका ऊपर वर्णन किया गया है। पाचवें वर्ग में दास आते हैं, जिनके पंद्रह प्रकार हैं- (वही, 5.2)

    11. जो (अपने स्वामी के ) घ में उत्पन्न हुआ है, जो खरीदा गया है, जो उपहार में मिला है, जो विरासत में मिला है, जिसका अकाल के समय भरण-पोषण किया गया है, जो उसके वैध स्वामी द्वारा गिरवी के रूप में रखा गया है - (वही, 5.26.)

    12. जिसको भारी ऋण चुकाकर मुक्त कराया गया है, जो युद्धबंदी है, जो दांव में जीता गया है, जो तपस्वी जीवन त्याग कर यह घोषित करता है, 'मैं आपका हूं' जो निश्चित अवधि के लिए दास है- (वही, 5.27.)

    13. जो जीविकोपार्जन के उद्देश्य से दास बनता है, जो दास स्त्री के साथ संबंध होने के कारण दास हो गया और जो स्वयं को बेच देता है। कानून के आधार पर ये पंद्रह के दास हैं- (वही, 5.28.)

    14. इनमें से प्रथम चार श्रेणी के दास स्वामी की सहमति के बिना मुक्त नहीं किए जा सकते। उनका दासत्व वंशानुगत है- (वही, 5.29)

    15. ऋषियों का कथन है कि ये सभी एक जैसे पराधीन होते हैं, परंतु इनका स्तर और इनकी आय इनकी विशिष्ट जाति और व्यवसाय पर निर्भर करती है- (वही, 5.4.)

vibhinn varg Unki utpati aur Karam - dr Bhimrao Ramji Ambedkar


विधि के समक्ष समानता :-

    1. जब दो व्यक्ति परस्पर अपशब्द कहें तब यदि वे एक ही जाति के हों, तो उनहें समान दंड दिया जाए। यदि एक ही जाति दूसरे से हीन है तो छोटी जाति वाले को दुगुना दंड दिया जाए और ऊंची जाति वाले को सामान्य दंड का आधा- ( बृहस्पति 20.5.)

    2. जाति और गुण में समान व्यक्ति एक-दूसरे को अपशब्द कहें तो कानून के अनुसार उन्हें साढ़े तेरह पण का अर्थदंड दिया जाए - (वही, 20.6)

    3. यदि ब्राह्मण को क्षत्रिय अपशब्द कहता है तो उस पर पचास पण का जुर्माना किया जाए, वैश्य को गाली देने पर पच्चीस पण और शूद्र को गाली देने पर साढ़े बारह पण अर्थदंड दिया जाए - (वही, 20.7.)

    4. यह दंड एक गुणशील शूद्र को (गाली) दिए जाने के लिए है, जिसका कोई दोष न हो। ब्राह्मण द्वारा गुणहीन ( शूद्र) को अपशब्द कहने पर कोई अपराध नहीं बनता - (वही, 20.8 )

    5. यदि कोई वैश्य क्षत्रिय को अपशब्द कहता है तो उस पर एक सौ पण जुर्माना किया जाए। यदि क्षत्रिय वैश्य को अपशब्द कहे तो उसे आधा धन अर्थदंड के रूप में देना होगा - (वही, 20.9)

    6. क्षत्रिय के संबंध में, यदि वह किसी शूद्र को अपशब्द कहता है तो उस (क्षत्रिय) पर बीस पण अर्थदंड किया जाए। वैश्य के संबंध में, यदि वह किसी शूद्र को गाली देता है तब कानून-विदों क े मत में उस पर दुगुना अर्थदंड दिया जाए (वही, 20.10 )

    7. शूद्र यदि वैश्य को अपशब्द कहता है तो उसे ऐसा करने पर प्रथम अर्थदंड देने के लिए बाध्य किया जाए। क्षत्रिय को गाली देने पर मध्यम और ब्राह्मण को ( अपशब्द कहने पर ) सर्वोच्च दंड दिया जाए - (वही, 20.11.)

    8. ब्राह्मण से अपशब्द बोलने वाले क्षत्रिय को सौ पण, वैश्य को डेढ़ सौ या दो सौ पण और शूद्र को शारीरिक दंड दिया जाए - (मनु, 8.267.)

    9. क्षत्रिय से अपशब्द बोलने वाले ब्राह्मण को पचास पण वैश्य को पच्चीस पण और शूद्र को बारह पण का दंड दिया जाए - (वही, 8.268.)

   10. जो शूद्र द्विज को दारुण वचन कह उसकी अवमानना करता है, उसकी जीभ कटवा दी जाए क्योंकि वह नीच कुलोद्भव है - ( मनु, 8.270.)

   11. यदि वह द्विज का नाम और ( उसकी ) जाति का उल्लेख अपमान के तौर पर करता है तब उसके मुंह में दस अंगुल लंबी दहकती हुई कील डाल दी जाए - (वही, 8.271.)

   12. यदि वह ब्राह्माण को उद्दंडतापूर्वक उसके कर्तव्य की शिक्षा देता है तब राजा उसके मुख और कानों में खौलता हुआ तेल डलवाए - (वही, 8.272.)

   13. ब्राह्मण और क्षत्रिय द्वारा एक-दूसरे को अपवचन कहने पर विवेकसंपन्न राजा द्वारा अवश्य अर्थदंड दिया जाए, जो ब्राह्मण के लिए सबसे कम और क्षत्रिय के लिए औसतन हो- ( वही, 8.276. )

   14. यदि नीच जाति का कोई व्यक्ति अपने किसी भी अंग से (तीन उच्च जातियों के ) व्यक्ति को क्षति पहुंचाए तब उसका वह अंग कटवा दिया जाए, यही  मनु की शिक्षा है- (वही, 8.279.)

    15. नीच जाति का जो व्यक्ति अपना हाथ या लाठी उठाए उसका हाथ कटवा दिया जाए, जो व्यक्ति गुस्से में अपनी लात से मारे उसकी वह लात कटवा दी जाए (वही, 8.280.)

    16. नीच जाति का व्यक्ति यदि ऊंची जाति के व्यक्ति के आसन पर बैठने का प्रयत्न करे तब उसके नितंब को दगवा दिया जाए और उसे राज्य से निष्कासित कर दिया जाए या राजा द्वारा उसके नितंब में गहरा घाव करवा दिया जाए - (वही, 8.281)

    17. अगर वह उद्दंड हो ( अपने से श्रेष्ठ पर ) थूक दे तब राजा उसके दोनों ओष्ठों को कटवा देगा, अगर वह ( उस पर ) पेशाब कर दे तब राजा उसके शिशन को कटवा देगा, अगर वह ( उसकी ओर ) आपान वायु छोड़ दे तब उसकी गुदा को कटवा देगा - (वही, 8.282. )

   18. यदि वह अपने से श्रेष्ठ को केश पकड़कर खीचे तब राजा निस्संकोच उसके दोनों हाथ कटवा देगा, इसी तरह अगर वह उसकी टांगें पकड़कर खीचे तब राजा उसकी दाढ़ी, गर्दन या अंडकोष कटवा देगा - (वही, 8. 283. )



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