1. प्रत्येक शूद्र जो शुचिपूर्ण है, जो अपने से उत्कृष्टों का सेवक है, मृदुभाषी है, अहंकार रहित है और सदा ब्राह्मणों के आश्रित रहता है, ( अगले जन्म में ) उच्चतर जाति प्राप्त करता है- (वही, 9.335.)
2. लेकिन शूद्र ब्राह्मणों की सेवा करे चाहे स्वर्ग के लिए हो या चाहे दोनों उद्देश्यों के लिए (अर्थात् इस जन्म और इससे अगले जन्म के लिए) हो, क्योंकि वह जो ब्राह्मण का सेवक कहा जाता है, अपने सभी उद्देश्यों को प्राप्त कर लेता है - (वही, 10.122.)
3. यदि कोई शूद्र (जो ब्राह्मणों की सेवा से अपना जीवन-निर्वाह नहीं कर पाता है) जीविका चाहता है तब वह क्षत्रिय की सेवा करे या वह किसी धनी वैश्य की सेवा कर अपना जीवन निर्वाह करे - (वही, 10.121.)
4. उनको चाहिए कि वे उसकी योग्यता, उसके परिश्रम और यह ध्यान में रखकर कि उसे कितने आश्रितों का पालन-पोषण करना है, अपने परिवार (की संपत्ति में से) उसके लिए उचित अंश जीवन निर्वाह के लिए नियत करे - (वही, 10.124.)
5. खाने से बचा हुआ अन्न तथा पुराने वस्त्र, बचा हुआ अनाज और गृहस्थी का पुराना सामान उसे अवश्य दिया जाए - (वही, 10.125.)
6. किसी भी शूद्र को संपत्ति का संग्रह नहीं करना चाहिए चाहे वह इसके लिए कितना भी समर्थ क्यों न हो, क्योंकि जो शूद्र धन का संग्रह कर लेता है, वह ब्राह्मणों को कष्ट देता है- (वही, 10.129)
7. यथा शास्त्र जीवन - निर्वाह करने वाले शूद्रों को हर महीने अपना मुंडन करवाना चाहिए, उनकी शुचि का विधान वैसा ही होगा जैसा वैश्यों का होता है और उनका भोजन आर्यों के भोजन का उच्छिष्ट अंश होगा - (वही, 5.140.)
8. जैसा कि कहा जा चुका है, प्राचीन विधि-निर्माताओं ने जिस समाज के लिए अपनी-अपनी व्यवस्थाएं दीं, वह दो भागों में था। एक भाग उन लोगों का था जो चातुर्वर्ण्य की व्यवस्था में सम्मिलित थे। दूसरे भाग में वे लोग आते थे जो चातुर्वर्ण्य की व्यवस्था से बाहर थे। मनुस्मृति में इन्हें बाह्य अर्थात् चातुर्वर्ण्य की परिधि से बाहर कहा गया है। उन्हें निम्न जाति कहा गया है। इस निम्न जाति का उद्भव ऐसा विषय है, जिससे फिलहाल अभी में संबंधित नहीं हूं। यहां इतना ही कहना यथेष्ट है कि हिंदुओं के इन प्राचीन विधि-निर्माताओं के अनुसार इन निम्न जातियों की उत्पत्ति उन चारों वर्णों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के बीच परस्पर विवाह - संबंध होने से हुई, जो चातुर्वर्ण्य व्यवस्था में सम्मिलित किए गए। यह कहां तक सच है इस पर कभी बाद में विचार किया जाएगा। हम मुख्यतः सामाजिक संबंधों से संबंधित हैं, इनकी उत्पत्ति से नहीं। अब तक जिन विधानों की चर्चा की गई है, वह उन लोगों से संबंधित है, जो चातुर्वर्ण्य की व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं। अब उन नियमों की चर्चा की जानी है, जो चातुर्वर्ण्य व्यवस्था के बाहर रखे गए अथवा जिन्हें निम्न जाति कहा गया। आश्चर्य यह है कि जो नियम निम्न जातियों की जीवन-चर्या नियंत्रित करते हैं, वे बहुत थोड़े हैं। ये नियम यद्यपि बहुत थोड़े हैं तो भी इन नियामकों ने उन्हें इतना संक्षिप्त कर दिया है कि किसी को नियमों की ब्यौरेवार संहिता की कोई आवश्यकता नहीं हुई। ये नियम निम्नलिखित हैं:
1. इस पृथ्वी पर जो भी जातियां उस समुदाय से अलग रखी गई हैं, जो मुख, बाहु, जंघा और (ब्राह्मण के) पैरों से जन्मी हैं, वे दस्यु कहलाती हैं, जो चाहे म्लेच्छों (बर्बर जातियों) की भाषा बोलती हो या आर्यों की - (मनु, 10.45)
2. ये जातियां प्रसिद्ध वृक्षों और श्मशान भूमि के निकट या पर्वतों पर और झाड़ियों के पास निवास करें, (कुछ चिह्नों से ) जानी जाएं और अपने विशिष्ट व्यवसाय से जीविकोपार्जन करें- (वही, 10.50.)
3. लेकिन चांडालों और श्वपचों के घर के गांव के बाहर होंगे, उन्हें अपपात्र बनाया जाना चाहिए और उनकी संपत्ति कुत्ते और गधे होंगे - (वही, 10.51)
4. मृतक के वस्त्र इनके वस्त्र होंगे, वे टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन करेंगे, उनके गहने काले लोहे के होंगे और वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते-जाते रहेंगे- (वही, 10.52.)
5. धर्म का आचरण करने वाला व्यक्ति इन लोगों के साथ व्यवहार न रखे और उनके व्यवहार उनके अपने ही समुदाय में होंगे और विवाह समान व्यक्तियों के साथ ही होंगे - ( मनु, 10.53.)
6. डनका भोजन (आर्य दाता के अतिरिक्त) अन्य के द्वारा टूटे-फूटे बर्तन में दिया गया होगा। रात्रि के समय वे गांवों और नगरों के आस-पास नहीं जाएंगे (वही, 10.54.)
7. दिन में वे, राजा के द्वारा चिह्नों से अंकित हो जिससे वे अलग-अलग पहचाने जा सकें, अपने-अपने काम के लिए जाएंगे और उन व्यक्तियों के शवों को ले जाएंगे जिनके कोई सगे-संबंधी नहीं हैं, यही शास्त्र सम्मत मर्यादा है- (वही, 10.55.)
8. वे राजा का आदेश होने पर अपराधियों का वध कानून में विहित विधि के अनुसार हमेशा करेंगे और वे अपने लिए (ऐसे ) अपराधियों के वस्त्र, शैया और आभूषण प्राप्त करेंगे- (वही, 10.56.)
9. जो भी व्यक्ति निम्नतम जातियों की किसी स्त्री के साथ संबंध रखता है, उसका वध कर दिया जाएगा - (वही, 5.43. )
10. अगर कोई व्यक्ति जिसको (चांडाल या किसी अन्य निम्न जाति का होने के कारण ) स्पर्श नहीं किया जाना चाहिए, जान-बूझकर अपने स्पर्श से ऐसे व्यक्ति को अपवित्र करता है, जो द्विज जाति का होने के कारण (केवल द्विज व्यक्ति द्वारा ही) छुआ जा सकता है, तो उसका वध कर दिया जाएगा - (वही, 5.104.)