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शूद्र और प्रतिक्रांति (भाग 1) - लेखक - डॉ. भीमराव आम्बेडकर

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शूद्र और प्रतिक्रांति

     डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर सोर्स मैटिरियल पब्लिकेशन कमेटी को मूल अंग्रेजी की पांडुलिपि में फुलस्केप टाइप किए हुए इक्कीस पृष्ठ प्राप्त हुए थे। प्रथम पृष्ठ पर शीर्षक 'शूद्राज एंड दि काउंटर रिवोल्यूशन' ( शूद्र और प्रतिक्रांति) दिया गया है और आगे के पृष्ठों पर सामग्री इसी शीर्षक से शुरू होती है। ये सभी पृष्ठ बिखरे और एक-दूसरे से नत्थी किए हुए मिले हैं। दुर्भाग्य से केवल इक्कीस पृष्ठ उपलब्ध हैं और बाद के पृष्ठ लगता है कि खो गए हैं- संपादक

     शूद्रों की स्थिति के विषय में मनु के नियम अध्ययन के लिए एक बहुत ही रोचक विषय हैं। इसका सीधा-सा कारण यह है कि इन नियमों ने हिंदुओं की मनोवृत्ति को ढाला और शूद्रों के प्रति उनके दृष्टिकोण को निर्धारित किया, जो इस समय और हर युग में सबसे अधिक संख्या में हिंदू समाज के अंग रहे हैं। इन नियमों को नीचे अलग-अलग शीर्षकों में वर्णित किया गया है, जिससे पाठकों को उस स्थिति की पूरी-पूरी जानकारी मिल सके, जो मनु ने शूद्रों के समाज को दी है।

Shudra Aur Pratikranti - Dr Babasaheb Ambedkar

     4.61. मनु ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य गृहस्थों को आदेश देता है - 'वे उस देश में न रहें जहां शासक शूद्र हों। शूद्र सम्मानित व्यक्ति नहीं समझाजाए, क्योंकि मनु नियम बताता है:

     9.24. ब्राह्मण कभी भी यज्ञ (करने) के लिए, अर्थात् धार्मिक कार्यों के लिए शूद्र से कभी भी धन नहीं मांगेगा। शूद्रों के साथ वैवाहिक संबंध प्रतिबंधित थे। शेष तीन वर्णों में से किसी भी वर्ण की नारी के साथ विवाह निषिद्ध था। उच्च वर्ण की नारी के साथ शूद्र को कोई भी संबंध रखने का अधिकार नहीं था और उसके साथ यदि कोई शूद्र जार कर्म करता है, तो इस अपराध के लिए मनु ने उसे मृत्यु दंड का प्रावधान किया है।

     8.374. जो शूद्र उच्च वर्ण की किसी रक्षित¹ या अरक्षित नारी के साथ संभोग करता है, उसे निम्नलिखित रीति के आधार पर दंड दिया जाएगा:

     यदि वह अरक्षित थी तब उसका अपराधी अंग कंटवा दिया जाए। यदि वह सुरक्षित थी तब उसे दंड दिया जाए और उसकी संपत्ति अधिग्रहीत कर ली जाए।

     पद के संबंध में मनु निर्धारित करता है:

     8.20. कोई भी ब्राह्मण जो जन्म से ब्राह्मण है, अर्थात् जिसने न तो वेदों का अध्ययन किया है और न वेदों द्वारा अपेक्षित कोई कर्म किया है, वह राजा के अनुरोध पर उसके लिए धर्म का निर्वचन कर सकता है, अर्थात् न्यायाधीश के रूप में कार्य कर सकता है, लेकिन शूद्र यह कभी भी नहीं कर सकता, चाहे ( वह कितना ही विद्वान क्यों न हो ) ।

     8.21. जिस राज्य में उसका राजा दर्शक की भांति केवल देखता रहता है और उसकी उपस्थिति में शूद्र न्याय का विचार करता है, वह राज्य उसी प्रकार अधोगति को प्राप्त होता है, जिस प्रकार गाय दलदल में नीचे की ओर धंस जाती है।

     8.272. अगर कोई शूद्र अहंकारवश ब्राह्मणों को धर्मोपदेश देने की धृष्टता करता है, तो राजा को चाहिए कि वे उसके मुंह और कान में खौलता तेल डलवा दे। शूद्रों द्वारा ज्ञान ग्रहण करने के संबंध में मनु की व्यवस्थाएं निम्न प्रकार हैं: 3.456. जो शूद्र शिष्यों को अध्ययन कराता है और जिस किसी का शिक्षक शूद्र होता है, वह शूद्र को नियुक्त करने के कारण अयोग्य हो जाते हैं।

     4.99. उसे शूद्र की उपस्थिति में ...... वेदों का कभी भी पाठ नहीं करना चाहिए ।

     वेदाध्ययन करने पर शूद्रों को दंडित करने के संबंध में मनु के परवर्ती लेखक तो और भी कठोर हैं। उदाहरण के लिए, कात्यायन का कहना है कि यदि कोई शूद्र वेद वाक्य सुन ले अथवा वेद के एक शब्द का भी उच्चारण करे, तो राजा उसकी जिह्वा को दो भागों में चिरवा दे और उसके कान में पिघला हुआ गरम सीसा डलवाए ।

     शूद्रों द्वारा संपत्ति रखे जाने के संबंध में मनु की व्यवस्था निम्नांकित है:

     10.129. (धनोपार्जन में) समर्थ होने पर भी शूद्र को धन का संग्रह नहीं करना चाहिए क्योंकि नीच पुरुष, जिसने धन का संग्रह कर लिया है, अहंकारी हो जाता है।

     8.417. यदि ब्राह्मण अपनी जीविकोपार्जन के लिए कष्ट में है तो वह निस्संकोच अपने शूद्र की संपत्ति को अधिग्रहीत कर लें।


1. रक्षित का अर्थ है किसी संबंधी के संरक्षण में, और अरक्षित का अर्थ है, अकेले रहना ।



     शूद्र केवल एक ही व्यवसाय कर सकता है। मनु के अटल नियमों में यह भी अटल नियम है। मनु कहता है:

     1.91. ब्रह्मा ने शूद्रों के लिए एक ही व्यवसाय नियत किया है - विनम्रतापूर्वक तीन अन्य वर्गों (अर्थात्) ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य की सेवा करना ।

     10.121. अगर शूद्र (ब्राह्मणों की सेवा कर जीवन निर्वाह करने में असमर्थ है) जीविका निर्वाह करना चाहता है, तब वह क्षत्रिय की सेवा करे, या वह धनी वैश्य की सेवा कर अपनी जीविका के लिए धन अर्जन करे।

     10.122. लेकिन वह (शूद्र) ब्राह्मणों की सेवा या तो स्वर्ग प्राप्त करने या दोनों के लिए (इस जीवन और अगले जीवन के लिए) करें, क्योंकि जो ब्राह्मण का सेवक कहलाता है, वह अपनी सभी अभिलाषाएं पूरी कर लेता है।

     10.123. ब्राह्मणों की सेवा करना ही शूद्रों का एक उत्तम कर्म कहा गया है, क्योंकि इसके अतिरिक्त वह जो कुछ करता है, उसका उसे कोई फल नहीं मिलता।

     मनु इस बात के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता कि शूद्रों से दास कर्म कराने के लिए किसी करार का सहारा लिया जाए। यदि कोई शूद्र सेवा करने से इंकार करता है, तो उससे बलपूर्वक कार्य कराने का विधान है, जो इस प्रकार है:

     8.413. प्रत्येक ब्राह्मण शूद्र को दास-कर्म करने के लिए बाध्य कर सकता है, चाहे उसने उसे खरीद लिया हो अथवा नहीं, क्योंकि शूद्रों की सृष्टि ब्राह्मणों का दास बनने के लिए ही की गई है।

     10.124. ब्राह्मणों को चाहिए कि वे अपने परिवार ( की संपत्ति) में से उसे ( शूद्र को) उसकी योग्यता, उसके परिश्रम तथा उन व्यक्तियों की संख्या के अनुसार, जिनका उसे (शूद्र को) भरण-पोषण करना है, उचित जीविका निश्चित करे । 10.125. उसे (शूद्र को) बचा खुचा अन्न, घर-गृहस्थी का पुराना सामान दिया जाए।

     मनु का कहना है कि शूद्र को चाहिए कि वह अन्य के साथ बातचीत और व्यवहार में विनम्र रहे।

     8.270. जो शूद्र द्विज को दारुण वचन कह उसकी निंदा करता है, उसकी जिह्वा को काटकर फेंक देना चाहिए, क्योंकि वह जन्म से नीच है।

     8.271. यदि वह (शूद्र) इनके (द्विजों के) नाम और जाति का इन द्विजातियों के नाम तथा जाति का उच्चारण कर कटु वचन अपमानजनक रीति से उच्चारण करता है तब उसके मुख में दहकती हुई लोहे की दस अंगुल लंबी गरम कील घुसेड़ दी जाए।



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