मनु अंतर्जातीय विवाह का विरोधी है। उसका कहना है कि प्रत्येक वर्ण अपने वर्ण में ही विवाह करे। परंतु उसकी निश्चित वर्ण के बाहर के विवाह को मान्यता थी; फिर यहां भी वह इस बात के लिए विशेष रूप से सचेत था कि अंतर्जातीय विवाह से उसके वर्णों की असमानता के सिद्धांत को हानि न पहुंच सके। गुलामी के समान वह अंतर्जातीय विवाह को अनुमति देता है, परंतु उल्ट क्रम से नहीं। एक ब्राह्मण जब अपने वर्ण के बाहर विवाह करना चाहे तब उसके नीचे के किसी वर्ण के साथ विवाह कर सकता है एक क्षत्रिय उसके नीचे के दो वर्णों, वैश्य और शूद्र स्त्री के साथ विवाह कर सकता है, परंतु किसी ब्राह्मण स्त्री के साथ विवाह नहीं कर सकता जो उससे ऊंचा वर्ण है। एक वैश्य किसी शूद्र वर्ण की स्त्री के साथ विवाह कर सकता है जो सीधे उससे नीचे हैं, परंतु वह ब्राह्मण तथा क्षत्रिय वर्ण की स्त्री के साथ विवाह नहीं कर सकता।
यह भेदभाव क्यों ? इसका केवल एक ही उत्तर है कि मनु असमानता के नियम को बनाए रखने के लिए अत्यधिक उत्सुक था।
हम विधि के नियम को ही लें। विधि के नियम का सर्वसाधारण अर्थ यही समझा जाता है कि कानून के सामने सभी समान हैं। इस विषय पर मनु का क्या कहना है, यह बात जो कोई जानना चाहता हो, वह उसकी आचार संहिता के निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
गवाही देने के लिए मनु के अनुसार उसे निम्न प्रकार से शपथ दी जाए :
8.87 - शुद्ध हृदय न्यायकर्ता शुद्ध तथा सत्य वक्ता द्विज को कई बार पुकारेगा कि वह किसी देवता की प्रतिमा या ब्राह्मण की प्रतीक प्रतिमा के समक्ष पूर्व या उत्तर की ओर मुखकर खड़े होकर पूर्वाह्न में अपनी गवाही दे ।
8.88 - न्यायाधीश ब्राह्मण से 'कहो' क्षत्रिय से 'सत्य कहो' वैश्य से 'गो बीज' और स्वर्ण की चोरी के पाप की 'झूठी गवाही' से तुलना करते हुए तथा शूद्र से उन सभी पापों जो मनुष्य कर सकता है, के दोषों की झूठी गवाही से तुनला करते हुए गवाही देने को कहेगा।
8.113 न्यायाधीश पुरोहित को उसके सत्य वचन की, क्षत्रिय को उसके घोड़ा, हाथी अथवा शस्त्र की, वैश्य को उसकी गाय अनाज, आभूषणों की, शूद्र को उसके सिर पर हाथ रखकर, यदि वह झूठ बोला तो उसे सब पाप लगें कहकर शपथ दे ।
मनु झूठी गवाही देने वाले मामलों पर भी विचार करता है। उसके अनुसार झूठी गवाही देना अपराध है। वह कहता है :
8.122. न्याय की विफलता को रोकने के लिए तथा दुराचार को रोकने के लिए बुद्धिमान मनुष्यों ने झूठी गवाही देने वालों के लिए कुछ दंड बतलाए हैं, जिनकी आज्ञा ऋषि विधायकों ने दी है।
8.123. निम्न वर्गों को न्यायी राजा झूठी गवाही देने के लिए पहले जुर्माना लेकर उन्हें राज्य की सीमा त्याग देने को कहे, परंतु ब्राह्मण को केवल राज्य की सीमा त्यागने को कहे। किन्तु मनु ने एक अपवाद स्थापित किया :
8.112. तथापि किसी स्त्री से प्रेम व्यक्त करते समय, विवाह के प्रस्ताव के समय, किसी गाय द्वारा घास अथवा फल खाते समय, यज्ञ के लिए लकड़ी ले जाते समय अथवा ब्राह्मण की रक्षा का वचन देते समय हल्की शपथ लेना घोर पाप है।
अपराधों के मसले चलाने के लिए उनकी स्थिति मनु के अध्यादेशों को जानने से स्पष्ट होती है, जिनका संबंध कुछ महत्वपूर्ण अपराधों से है। मानहानि के अपराध के लिए मनु कहता है :
8.267. यदि कोई क्षत्रिय किसी पुरोहित की मानहानि करता है तो उस पर सौ पण का जुर्माना किया जाएगा। यदि कोई वैश्य किसी पुरोहित की मानहानि करता है तो उस पर एक सौ पचास या दो सौ पण का जुर्माना किया जाएगा, लेकिन ऐसे किसी अपराध के लिए किसी शिल्पी या दास व्यक्ति को कोड़े लगाए जाएंगे।
8.268. यदि कोई पुरोहित किसी क्षत्रिय की मानहानि करे तो उस पर पचास पण का जुर्माना किया जाएगा, यदि वह किसी वैश्य की मानहानि करता है तो उस पर पच्चीस पण का जुर्माना किया जाएगा तथा दास वर्ग के किसी व्यक्ति की भर्त्सना करने पर बारह पण का जुर्माना किया जाएगा।
8.270. यदि कोई शूद्र व्यक्ति किसी द्विज की घोर भर्त्सना करता है तो उसकी जीभ काट दी जाए, क्योंकि उसने ब्रह्मा के निम्नतम भाग से जन्म लिया है।
8.2.71. यदि शूद्र उनके नामों तथा वर्णों का अपमानपूर्ण तरीके से उल्लेख करता है, मानो वह कहता है, अरे देवदत्त, तू ब्राह्मण नहीं है, तो दस अंगुल लंबी लोहे की गर्म सलाक उसके मुंह में डाली जाएगी।
8.272. यदि शूद्र घमंडपूर्ण पुरोहितों को उनके कर्तव्यों के लिए निर्देश देता है, तो राजा उसके मुंह तथा कान में गर्म तेल डालने का आदेश देगा।
गाली देने के अपराध के लिए मनु कहता है :
8.276. यदि कोई पुरोहित तथा क्षत्रिय आपस में गाली-गलौच करते हैं, तो इस संबंध में जुर्माना विद्वान राजा द्वारा किया जाएगा, और वह दंड या जुर्माना पुरोहित पर सबसे कम तथा क्षत्रिय पर उससे अधिक किया जाएगा।
8.277. उपरोक्त अपराध यदि कोई वैश्य शूद्र करते हैं, तब उन्हें जबान काटने की सजा छोड़कर शेष सभी प्रकार का दंड उनकी जाति के अनुसार दिए जाएं, दंड का यह निर्धारित नियम है।
प्रहार या मार-पीट के अपराध के लिए मनु कहते हैं :
8.279. जिस अंग द्वारा नीच जाति व्यक्ति ऊंची जाति के व्यक्ति पर हमला करेगा या उसे चोट पहुंचाएगा, उसका वह अंग काट लिया जाएगा। यह मनु का अध्यादेश है।
8.280. जिसने दूसरे पर हाथ उठाया हो अथवा डंडा उठाया हो, तो उसका हाथ काट दिया जाए और जो क्रोध में आकर किसी के लात मारता है, उसका पैर काट दिया जाए।
अहंकार के अपराध के लिए मनु कहता है :
8.2.81. नीच जाति का कोई व्यक्ति यदि उच्च गति के व्यक्ति के साथ उसी स्थान पर अभद्रता के साथ बैठेगा, तो उसके कूल्हे को दाग दिया जाएगा तथा उसे देश निकाला दे दिया जाएगा या राजा उसके नितंब पर गहरा घाव करवा देगा।
8.282. यदि वह घमंड के साथ उस पर थूकता है, तो राजा उसके दोनों होठों को; यदि वह उस पर पेशाब करता है तो उसके लिंग को; यदि वह अपान वायु, छोड़े तो उसकी गुदा को कटवा देगा |
8.283. यदि वह ब्राह्मण को बालों से पकड़ता है या इसी तरह यदि वह उसका पैर या गला या अंडकोश पकड़कर खींचता है तो राजा बिना किसी हिचक या संकोच के उसके हाथों को कटवा दे।
व्यभिचार के अपराध के लिए मनु कहता है :
8.3.59. यदि कोई शूद्र किसी पुरोहित की पत्नी के साथ वास्तव में व्यभिचार करता है, तो उसे मृत्युदंड मिलना चाहिए; पत्नियों के मामले में सभी चारों वर्णों की स्त्रियों की विशेष रूप से रखा की जानी चाहिए।
8.3.66. यदि कोई शूद्र किसी उच्च जाति की युवती से प्यार करता है, तो उसे मृत्यु - दंड मिलना चाहिए; परंतु यदि वह कोई समान वर्ग की कन्या से प्यार करता है, तो उसे उस कन्या से शादी करनी होगी, बशर्ते उस कन्या का पिता इसके लिए इच्छुक हो ।
8.374. यदि कोई शूद्र किसी द्विज स्त्री के साथ संभोग करता है, चाहे वह स्त्री घर पर रक्षित है अथवा अरक्षित, उसे उसी प्रकार दंड दिया जाएगा यदि स्त्री अरक्षित है तो अपराधी के लिंग को कटवाकर तथा उसकी संपत्ति को जब्त पर दंडित किया जाए। यदि वह रक्षित है तो अपराधी की संपत्ति को जब्त कर उसे प्राणदंड दिया जाए।
8.375. रक्षित ब्राह्मणी के साथ व्यभिचार करने पर वैश्य एक वर्ष की सजा के बाद अपनी समस्त धन-संपत्ति खो देगा, क्षत्रिय पर एक हजार पण जुर्माना किया जाएगा और गधे के मूत्र से उसका मुंडन किया जाएगा ।
8.376. लेकिन यदि कोई वैश्य या क्षत्रिय किसी अरक्षित ब्राह्मणीक के साथ व्यभिचार करता है तो राजा वैश्य पर पांच सौ पण तथा क्षत्रिय पर एक हजार पण का केवल जुर्माना करेगा।
8.377. लेकिन यदि ये दोनों किसी ने केवल रक्षित पुरोहितानी वरन् किसी गुणवती के साथ व्यभिचार करते हैं, तो वे शूद्रों के समान दंडनीय हैं अथवा तृणाग्नि में जलाने योग्य हैं।
8.382. यदि कोई वैश्य किसी रक्षित क्षत्रिय स्त्री के साथ या कोई क्षत्रिय किसी रक्षित वैश्य स्त्री के साथ व्यभिचार करता है तो उन दोनों को वही दंड दिया जाएगा जो अरक्षित पुरोहितानी के मामले में दिया जाता है।
8.383. लेकिन यदि कोई ब्राह्मण इन दोनों वर्णों की किसी रक्षित स्त्री के साथ व्यभिचार करता है, तो उस पर एक हजार पण का जुर्माना किया जाना चाहिए, और रक्षित शूद्र के साथ व्यभिचार करने पर क्षत्रिय या वैश्य पर भी एक हजार पण का जुर्माना किया जाना चाहिए।
8.384. यदि कोई वैश्य किसी रक्षित क्षत्रिय स्त्री के साथ व्यभिचार करता है तो जुर्माना पांच सौ पण होगा, लेकिन यदि कोई क्षत्रिय किसी वैश्य स्त्री के साथ व्यभिचार करता है, तो उसका सिर मूत्र में मुड़वा देना चाहिए या उल्लिखित जुर्माना लेना चाहिए ।
8.385. यदि पुरोहित किसी क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र अरक्षित स्त्री के साथ व्यभिचार करता है, तो उसे पांच सौ पण का दंड दिया जाना चाहिए और किसी नीचे वर्ण संकर जाति की स्त्री के साथ संबंधों के लिए उसे एक हजार पण का दंड देना होगा।
अपराधों के लिए सजा देने की पद्धति पर विचार करने पर मनु की योजना इस विषय पर बहुत ही मनोरंजक प्रकाश डालती है। निम्नलिखित अध्यादेशों पर विचार करें :
8.379. पुरोहित वर्ग के व्यभिचारी को प्राण- दंड देने की बजाए उसका अपकीर्तिकर मुंडन करा देना चाहिए तथा इसी अपराध के लिए अन्य वर्गों को मृत्य- दंड तक दिया जाए।
8.380. राजा समस्त पाप करने वाले ब्राह्मण का भी वध कभी न करे, किन्तु संपूर्ण धन के साथ अक्षत उसे राज्य से निर्वासित कर दे ।
11.126. क्षत्रिय वर्ग के किसी सदाचारी मनुष्य की जानबूझ कर हत्या करने पर किसी ब्राह्मण की हत्या के लिए जो दंड दिया जाता है, उसका एक चौथाई दंड होगा। वैश्य की हत्या के लिए उसका आठवां भाग और शूद्र की हत्या के लिए, जो निरंतर अपने कर्तव्य का पालन करता है, उसका सोलहवां भाग ।
11.127. बिना द्वेष-भाग के यदि ब्राह्मण किसी क्षत्रिय की हत्या कर देता है, तो उसे उसके सभी धार्मिक संस्कारों को करने के बाद पुरोहित को एक बैल और एक हजार गाय देनी चाहिए।
11.128. अथवा संयमी तथा जटाधारी होकर ग्राम से अधिक दूर पेड़ के नीचे निवास करता हुआ तीन वर्ष तक बह्म हत्या के प्रायश्चित को करे ।
11.129. सदाचारी वैश्य का बिना कारण वध करने वाला ब्राह्मण इसी प्रायश्चित को एक साल तक करे अथवा एक बैल के साथ सौ गायों को पुरोहित को दे ।
11.130. बिना इरादे के शूद्र का वध करने वाला ब्राह्मण छह मास तक इसी वृत्त को करे अथवा एक बैल और दस सफेद गाएं पुरोहित को दे।
11.381. ब्राह्मण-वध के समान पृथ्वी पर दूसरा कोई बड़ा पाप नहीं है, अतएव राजा मन से भी कभी ब्राह्मण का वध करने का विचार न करे।
8.126. एक ही प्रकार के बार-बार होने वाले अपराधों पर विचार करते हुए और उसका स्थान तथा समय निश्चित करते हुए अपराधी को दंड देने की अथवा सजा भुगतने की पात्रता को देखते हुए राजा को केवल उन लोगों को ही सजा देनी चाहिए, जो उसके लिए पात्र हैं।
8.124. ब्रह्मा के पुत्र मनु ने तीन कनिष्ठ वर्गों के विषय में दंड के दस स्थानों को कहा है और ब्राह्मण को पीड़ारहित अर्थात् बिना किसी प्रकार दंडित किए केवल राज्य से निकाल दिया जाता है।
8. 125 जनन्द्रिय का एक भाग पेट, जबान दो हाथ और पांचवां दो पांव, आंखें, नाक, दोनों कान, संपत्ति और मृत्यु दंड के लिए संपूर्ण शरीर सजा के स्थान हैं।