१. सबसे कठिन प्रश्न है पुनर्जन्म किस (व्यक्ति) का ?
२. क्या वही मरा हुआ आदमी एक नया जन्म ग्रहण करता है?
३. क्या भगवान बुद्ध इस सिद्धान्त को मानते थे ?
उत्तर है "इसकी कम से कम सम्भावना है ।"
४. यदि मृत आदमी के देह के सभी भौतिक-अंश पुनः नये सिरे से मिलकर एक नये शरीर का निर्माण कर सकें, तभी यह मानना सम्भव है कि उसी आदमी का पुनर्जन्म हुआ ।
५. यदि भिन्न भिन्न मृत शरीरों के अंशो के मेल से एक नया शरीर बना तो यह पुनर्जन्म तो हुआ, लेकिन यह उसी आदमी का पुनर्जन्म नहीं हुआ।
६. भिक्षुणी खेमा ने राजा प्रसेनजित् को यह बात अच्छी तरह समझा दी थी ।
७. एक बार तथागत श्रावस्ती के पास अनाथपिण्डक के जेतवनाराम विहार में ठहरे हुए थे I
८. अब उस समय कोशल जनपद में चारिका कर चुकने के बाद भिक्षुणी खेमा श्रावस्ती और साकेत के बीच तोरणवत्यु नाम स्थल पर ठहरी हुई थी ।
९. उस समय कोशल-नरेश प्रसेनजित् साकेत से श्रावस्ती आ रहा था । साकेत और श्रावस्ती के रास्ते में वह एक रात के लिये तोरणवत्यु में रूका ।
१०. कोशल-नरेश राजा प्रसेनजित् ने एक आदमी को बुलाकर कहा – “अरे भले आदमी! किसी श्रमण-ब्राह्मण का पता लगा जिसकी हम आज दिन संगति कर सके ।
११. “महाराज! बहुत अच्छा" उस आदमी ने कहा । वह सारी तोरणवत्थु में घूमा किन्तु उसे एक भी रमण-ब्राह्मण ऐसा नहीं मिला, जिसकी महाराज संगति कर सके ।
१२. तब उस आदमी ने भिक्षुणी खेमा को देखा, जो तोरणवत्थु में ठहरी हुई थी । उसे देखकर वह कोशल- नरेश प्रसेनजित् के पास वापस गया और बोला--
१३. “महाराज! तोरणवत्थु मेँ कोई ऐसा रमण-ब्राह्मण नहीं है जिसकी आप संगति कर सके, । लेकिन महाराज ! भिक्षुणी खेमा नाम की तथागत की एक शिष्या है। उसकी ख्याति सुनी है कि वह अर्हत है, योग्य है, कुशल है, पण्डित है, बात-चीत में पटु है और प्रत्युत्पन्नमति है । महाराज! आज दिन आप उसकी संगति करें। "
१४. तब कोशल-नरेश राजा प्रसेनजित् भिक्षुणी खेमा के पास गया। पास जाकर अभिवादन किया और एक और बैठ गया। बैठक उसने भिक्षुणी खेमा से कहा -
१५. “आपका इस विषय में क्या कहना है? क्या तथागत मरणान्तर रहते हैं?"
१६. “महाराज! यह बात भी तथागत द्वारा अव्याकृत ही है ।"
१७. “तो यह कैसी बात है कि जब मैं पूछता हूं कि क्या तथागत मरणान्तर रहते हैं, तो आपका उत्तर होता है कि यह बात भी तथागत ने अव्याकृत रखी है, और जब मै दूसरे प्रश्न पूछता हू तब भी आपका यही उत्तर होता है कि यह बात भी तथागत ने अव्याकृत रखी है । कृपया, यह बतायें कि क्या कारण है कि तथागत ने यह बात अव्याकृत रखी है ?”
१८. “महाराज! अब मैं आपसे एक प्रश्न पूछती हूँ । जैसा आपको लगे, वैसा उत्तर देना । अब आप क्या कहते है ? क्या आपके पास कोई गणक, कोई हिसाब लगाकर बता सकने वाला है जो हिसाब लगाकर बता सके कि गंगा मे इतने सौ, इतने हजार वा इतने लाख बालू के कण है?"
१९. "नही । ”
२०. “तो कोई ऐसा गणक है, जो ऐसा हिसाब लगाकर बता सकने वाला है जो यह बता सके कि समुद्र में इतना जल है, इतने सौ (गैलन) है, इतने हजार (गैलन) है या इतने लाख (गैलन) है ?”
२१. "नही ।"
२२. "तो यह कैसे है ?"
२३. "समुद्र असीम है, बहुत गहरा है, इसके तल तक नहीं पहुंचा जा सकता"।
२४. “इसी प्रकार महाराज ! यदि कोई तथागत के रूप से तथागत को मापना चाहे, तो तथागत का वह रूप परित्यक्त है. वह मूल से कट चुका है, वह कटे ताड-वृक्ष की तरह हो गया है वह अभाव प्राप्त हो गया है और अब उसकी पुनरुत्पत्ति की सम्भावना नहीं रही है । महाराज ! तथगात के रूप से तथागत की तह तक नहीं पहुंचा जा सकता । तथागत गम्भीर हैं, तथागत असीम है और तथागत की तह तक नहीं पहुचा जा सकता, ठीक वैसे ही जैसे समुद्र की । इसलिये यह भी नहीं कहा जा सकता कि 'तथागत मरणान्तर रहते हैं।' यह भी नहीं कहा जा सकता कि 'तथागत मरणान्तर नहीं रहते है।' यह भी नही कहा जा सकता कि 'तथागत रहते भी हैं और नहीं भी रहते और यह भी नहीं कहा जा सकता कि 'तथागत नहीं रहते हैं और नहीं नहीं भी रहते हैं।
२५. “इसी प्रकार महाराज ! यदि कोई तथागत की वेदना से तथागत को मापना चाहे, तो तथागत की वह वेदना परित्यक्त है, वह जड़मूल से कट चुकी है, वह कटे ताड़ - वृक्ष की तरह हो गयी है..... सम्भावना नहीं रही है । महाराज तथागत की वेदना से तथागत की तह तक नहीं.... जैसे समुद्र की । इसलिये यह भी नहीं कहा जा सकता कि 'तथागत मरणान्तर रहते हैं ... नहीं नहीं भी रहते हैं ।'
२६. “इसी प्रकार महाराज । यदि कोई तथागत की संज्ञा से, तथागत के संस्कारों से, तथागत के विज्ञान से तथागत को मापना चाहे, तो तथागत का वह विज्ञान परित्यक्त है, वह जडमूल से कट चुका है, वह काटे ताड-वृक्ष की तरह हो गया है..... सम्भावना नहीं रही. है । महाराज! तथागत के विज्ञान से तथागत की तह तक नहीं... जेसे समुद्र की । इसलिये यह भी नहीं कहा जा सकता कि 'तथागत मरणान्तर रहते हैं... नहीं नहीं भी रहते है ।"
२७. तब राजा प्रसेनजित् भिक्षुणी खेमा के शब्दों से प्रसत्र हुआ, आनंदित हुआ । वह अपने स्थान से उठा, उसे अभिवादन किया और चला गया ।
२८. अब एक और अवसर पर राजा प्रसेनजित तथागत के दर्शनार्थ गया । पास पहुंच कर अभिवादन किया और एक और बैठ गया । उसने तथागत से निवदेन किया-
२९. “भगवान! कृपया बतायें कि क्या तथागत मरणान्तर रहते हैं?"
३०. “महाराज! मैने इस बात को अव्यक्त रखा है ।"
३१. “भगवान! तो क्या तथागत मरणान्तर नहीं रहते हैं?"
३२. “महाराज! यह भी मैंने अव्यक्त रखा हैं ।”
३३. तब राजा ने ऐसे ही दूसरे प्रश्न पूछे और सभी का ऐसा ही उत्तर मिला ।
३४. “भवगान् ।यह कैसे है जब मैं पूछता हू कि क्या तथागत मरणान्तर रहते है, तो आपका उत्तर होता है कि यह बात तथागत द्वारा अव्याकृत हैं; और जब मैं यह पूछता कि क्या तथागत मरणान्तर नहीं रहते तो भी आपका उत्तर है कि यह बात तथागत द्वारा अव्याकृत है । भगवान्! कृपया यह बतायें कि क्या हेतु है, क्या कारण है कि यह बात भी तथागत ने अव्याकृत रखी है?"
३५. “तो महाराज! ये आपसे प्रश्न पूछता हू, जैसा आपको ठीक लगे वैसा उत्तर देना । क्या आपके पास कोई गणक है .... (सारा पूर्ववत ) ?”
३६. “अदभूत है गौतम! अद्भुत है सुगत! यह कितने बड़े आश्चर्य की बात है कि शास्ता और श्राविका के उत्तर में न अर्थ की दृष्टि से और न व्यंजन की दृष्टि से, कहीं कुछ भी अन्तर नहीं । एकदम समान उत्तर है, एकदम मेल खाता हुआ उत्तर है, उच्चतम बात के बारे में!
३७. “भगवान! एक समय मै भिक्षुणी खेमा के पास गया और उससे यही प्रश्न पूछा । उसने मुझे ठीक इन्हीं शब्दो मे, ठीक इन्ही अक्षरों में उत्तर दिया । अद्भुत है गौतम! अद्भुत है सुगत! यह कितने बड़े आश्चर्य की बात है कि शास्ता और श्राविका के उत्तरमें न अर्थ की दृष्टि से और न व्यंजन की दृष्टि से कहीं कुछ भी अन्तर नहीं । एकदम समान उत्तर है, एकदम मेल खाता हुआ उत्तर है, उच्चतम बात के बारे में।
३८. “अच्छा! भगवान! अब आज्ञा दें । हम जाना चाहते हैं । हमें बहुत कार्य हैं ।”
३९. “महाराज! इस समय आप जो करना उचित समझें वह करें।"
४०. तब कोसल-नरेश राजा प्रसेनजित् तथागत के वचनों से प्रसत्र हुआ, आल्हादित हुआ । वह अपने स्थान से उठा और तथागत अभिवादन कर चला गया ।