१. भगवान बुद्ध ने कहा- ‘आत्मा' नहीं है । भगवान् बुद्ध ने कहा-- 'पुनर्जन्म' है ।
२. ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो भगवान् बुद्ध पर यह दोष लगाते थे कि वे परस्पर विरोधी सिद्धांतों के प्रचारक है ।
३. उनकी शंका थी -- जब 'आत्मा' ही नही है तो 'पुनर्जन्म' कैसा हो सकता है?
४. इसमें कहीं कुछ भी विरोध नहीं हैं। बिना 'आत्मा' के पुनर्जन्म हो सकता है ।
५. आम का बीज है । आम के बीज से आम का पेड पैदा होता है। आम के पेड पर आम के फल लगते है
६. यह 'आम' का पुनर्जन्म है ।
७. लेकिन यहाँ 'आत्मा' कही भी नहीं है ।
८. इसी प्रकार बिना ‘आत्मा' के पुनर्जन्म हो सकता है ।
१. एक बार भगवान् बुद्ध जब श्रावस्ती के जेतवनाराम मे ठहरे हुए थे, तो उन्हें सूचना मिली कि अरिट्ठ नाम का एक भिक्षु ऐसे को, जो तथागत का मत नहीं है, तथागत का मत समझ रहा है ।
२. एक विषय जिसके बारे में अरिट्ठ तथागत को गलत तौर पर समझें बैठा था, वह तथागत के 'उच्छेद-वादी' होने न होने का विषय था ।
३. तथागत ने अरिट्ठ को बुला भेजा । अरिट्ठ आया । प्रश्न किये जाने पर उसका मूँह बन्द हो गया ।
४. तब तथागत ने उसे कहा-- “कुछ श्रमण-ब्राह्मण मुझ पर गलत तौर से, मिथ्यारुप से, झूठे रुप से--उच्छेदवादी होने का 'दोषारोपण' करते है । कहते है कि मैं प्राणियों के उच्छेद की, अभावात्मक विनाश की शिक्षा देता हूँ । यह वास्तविकता के सर्वथा विरुद्ध है ।
५. यही तो मैं नही हूँ, यही तो मैं नहीं सिखाता हूँ ।”
६. पहले भी और आज भी मैं यही सिखाता हूँ कि दुःख है और दुःख का निरोध है ।