महाराष्ट्र : एक भाषावार प्रांत ( भाग 4 )- डॉ. भीमराव अम्बेडकर
भाग III
20. अब मैं उन बिन्दुओं पर आता हूं, जिनके बारे में वाद-विवाद है। एक प्रांत के रूप में महाराष्ट्र के एकीकरण के बारे में किसी तरह का विवाद नहीं है। हां, इसके बारे में मतभेद अवश्य है कि यह एकीकरण किस तरह का हो। एक मत यह है कि नए महाराष्ट्र प्रांत का स्वरूप एकात्मक होना चाहिए अर्थात् उसकी केवल एक धारा सभा हो और केवल एक ही कार्यपालिका। दूसरी विचारधारा वालों का मत है कि महाराष्ट्र को दो उप-प्रांतों का संघ बनाया जाना चाहिए। इनमें से एक उप-प्रांत में बंबई प्रेसिडेंसी के मराठी भाषी जिले सम्मिलित होंगे और दूसरे उप-प्रांतों के रूप में महाराष्ट्र को विभाजित करने का विचार मध्य भारत और बरार के मराठी भाषा जिलों के प्रवक्ताओं के मस्तिष्क की उपज है। मुझे पूरा भरोसा है कि ऐसी इच्छा केवल उन कुछ उच्च जाति वाले राज- नेताओं की है, जो यह सोचते है कि एकीकृत महाराष्ट्र के बन जाने पर उनका राजनीतिक जीवन चौपट हो जाएगा। मध्य भारत और बरार की जनता इस विचाराधारा का समर्थन नहीं करती। मुझे इस मुद्दे को यहां उठाना नहीं चाहिए था, किन्तु मैंने ऐसा केवल इसलिए किया है, ताकि मैं जिसे बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत मानता हूं, उसके प्रख्यापन करने का मुझे अवसर मिल सके। जब यह तय हो चुका है कि महाराष्ट्र जैसा भाषावार प्रांत बनाया जाए तो मेरा दृढ़ मत है कि ऐसी स्थिति में एक ही भाषा-भाषी और सभी सटे हुए भू-भागों को उस प्रांत में सम्मिलित किया ही जाना चाहिए। तब न तो चुनाव का प्रश्न उठाया जाना चाहिए और न ही आत्म-निर्णय का। पूरा प्रयत्न किया जाना चाहिए, ताकि बड़ी प्रांतीय इकाइयां बनें। यदि छोटी-छोटी प्रांतीय इकाइयां बनेंगी तो वे सामान्य दिनों में सदा के लिए भार बनी रहेंगी और आपातकाल में तो निश्चित रूप से कमजोरी का स्रोत होंगी। इस तरह की परिस्थिति से बचा जाना चाहिए। इसलिए मेरा आग्रह है कि महाराष्ट्र के सभी भागों को मिलाकर एक ही प्रांत बना दिया जाए ।