महाराष्ट्र : एक भाषावार प्रांत ( भाग 7)- डॉ. भीमराव अम्बेडकर
बिंदु संख्या (3)
30. इस मुद्दे पर मतैक्य नहीं दिखाई पड़ता । बंबई को महाराष्ट्र में मिलाने से संबंधित विषय पर बोलते हुए प्रो. गाडगिल इस तथ्य पर बल देते हैं कि बंबई की मराठी भाषी जनसंख्या 1941 की जनगणना के अनुसार 51 प्रतिशत है। इस प्रस्ताव के विरोध में बोलते हुए प्रो. घीवाला बताते हैं कि यह केवल 41 प्रतिशत ही है प्रो. वकील तो इसे और नीचे 39 प्रतिशत पर ले आते हैं। इस संख्या को भी वे बहुत ही उदारता पूर्ण प्राक्कलन मानते हैं। इन आंकड़ों की जांच कर लेने का मुझे अवसर नहीं मिला। मैं तो यह मानता हूं कि बंबई की जनगणना के आंकड़े ठीक-ठीक प्रतिशत तक पहुंचने में अधिक मदद नहीं करते जान पड़ते हैं। फिर भी प्रो. वकील ने अपनी मान्यता के पक्ष में जो कारण गिनाए हैं, उन्हें यदि कोई पढ़े तो उसे साफ पता चल जाएगा कि उनका यह निष्कर्ष यदि दिवा स्वप्र नहीं तो कम से कम कल्पना की उड़ान तो अवश्य ही है। पर चलो, एक बार यह मान भी लें कि प्रो. वकील ने जो आंकड़े दिए है। वे सही हैं तो फिर इनका करें क्या? क्या इन्हें लेकर चाटें? इनसे क्या निष्कर्ष निकाला जा सकता है? क्या इन्हें जान लेने मात्र से महाराष्ट्र का बंबई पर दावा समाप्त मान लिया जाए? जब से अंग्रेजों ने भारत की सत्ता संभाली है, भारत एक देश रहा है और प्रत्येक व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की स्वतंत्रता रही है। यदि भारत के कोने-कोने से आकार लोगों को बंबई में बसने दिया गया तो इसका दुष्परिणाम महाराष्ट्रवासी क्यों भुगतें? इसमें उनकी गलती क्या है ? इसलिए जनसंख्या की वर्तमान स्थिति को महाराष्ट्र में बंबई को न मिलने देने का आधार नहीं बनाया जा सकता ।