Phule Shahu Ambedkar फुले - शाहू - आंबेडकर
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हिंदू धर्म की पहेलियां - ( भाग ४६ )  लेखक -  डॉ. भीमराव आम्बेडकर

     अब अंतिम प्रश्न यह है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के परस्पर संबंधों के संदर्भ में इस से बढ़कर कोई बात नहीं हो सकती जो भगवान दत्तात्रेय के जन्म के विषय में हैं। संक्षेप में कहानी इस प्रकार है कि एक बार तीनों देवों की पत्नियां सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती एक स्थान पर बैठी बात कर रहीं थी, तभी नारद जी प्रकट हुए। वार्ता के बीच एक प्रश्न उठा कि संसार में सबसे बड़ी पतिव्रता नारी कौन है? नारद ने कहा कि अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया सबसे बड़ी सती है। तीनों देवियां इससे चमक उठीं और प्रत्येक ने अपने आपको सब से बड़ी पतिव्रता सती नारी बताया। नारद जी नहीं माने और उनमें से प्रत्येक के व्यभिचार के अनेक प्रसंग प्रस्तुत किए। वे शांत तो हो गईं परन्तु भीतर प्रतीशोध की भावना प्रबल हो उठी। वे अनसूया के मुकाबले अपनी स्थिति बताना चाहती थीं। उन्होंने सोच-विचार कर षडयंत्र रचा कि अनसूया के साथ अवैध संभोग कराकर उसका शील भंग कराया जाए। अपनी योजना के अनुसार तीनों देवियों ने अपने पतियों के शाम को घर लौटने पर दोपहर में नारद के साथ हुए संवाद का जिक्र किया और बताया कि नारदजी ने उन्हें किस प्रकार लज्जित किया है और अपनी पत्नियों के अपमान का कारण वे हैं। यदि उन्होंने अनसूया के साथ व्यभिचार किया होता तो वह भी उनकी श्रेणी में आ जाती और नारद को उनका अपमान करने का अवसर न मिलता। उन्होंने अपने पतियों से पूछा कि क्या वे अपनी पत्नियों का ख्याल रखते हैं? यदि हां तो क्या यह उनका कर्त्तव्य नहीं है कि वे अनसूया का शील भंग करने के लिए तुरन्तु प्रस्थान करें और उसे सतीत्व के उस शिखर से नीचे धकेल दें, जिस पर उसे नारद ने बैठा बताया है। देवता सहमत हो गए कि यह उनका कर्त्तव्य है और वे इससे मुंह नहीं मोड़ सकते।

Trimurti ki Paheli - Riddle of Hinduism - Hindu Dharm Ki Paheliyan - Hindi Book Written by dr Bhimrao Ramji Ambedkar     तीनों देव सती का शील- हरण करने अत्रि की कुटिया की ओर चल पड़े। इन तीनों ने ब्राह्मण भक्षुओं का वेष धारण किया। जब वे वहां पहुंचे, अत्रि बाहर गए हुए थे। अनसूया ने उनका स्वागत किया और उनके लिए भोजन तैयार किया। जब भोजन तैयार हो गया तो उनसे आसन पर बैठकर भोजन करने के लिए कहा। तीनों देवों ने उत्तर दिया कि वे उसी स्थिति में उसके घर भोजन करेंगे, जब वह निर्वस्त्र होकर भोजन परोसे। प्राचीन भारत में आतिथ्य का नियम था कि ब्राह्मण भिक्षुक असंतुष्ट होकर न लौटे। वह जो मांगे, उसे दिया जाए। इस नियम के अनुसार अनसूया निर्वस्त्र होकर भोजन परोसने को सहमत हो गई। जब वह इस स्थिति में भोजन परोस रही थी तो अत्रि आ गए। जब उन्होंने अत्रि को आते हुए देखा तो वे नवजात शिशु बन गए । इन तीनों को अत्रि ने पालने में लिटा दिया। उसमें इन तीनों के सभी अंग जुड़कर एक हो गए परन्तु सिर अलग-अलग रहे। इस प्रकार दत्तात्रेय बने, जो तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संयुक्त रूप हैं।

     इस कहानी में अनैतिकता की दुर्गंध भरी पड़ी है और इसके अंत को जान-बूझकर ऐसा मोड़ दिया गया है, जिससे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के उस वास्तविक कुकर्म पर पर्दा डाल दिया जाए। उन्होंने अपनी पत्नियों के समक्ष सती अनसूया को गिरा दिया जैसा कि कहानी में निहित है। किसी समय हिंदुओं में यह प्रचलित था कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश की समान स्थिति है और उनके कार्य एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रतिस्पर्धात्मक नहीं। उन्हें त्रिमूर्ति कहा जाता था- एक साथ तीनों और एक में तीन । सभी विश्व के नियंता, ब्रह्मा सृष्टा, विष्णु पालक और शिव संरक्षक हैं।

     सामंजस्य की यह स्थिति अधिक दिनों नहीं चली। इन तीनों देवों के चारण ब्राह्मण तीन शिविरों में बंट गए। प्रत्येक के अनुयायी ने दूसरे के आराध्य को गिराने के लिए कमर कस ली। इसका परिणाम यह निकला कि एक देव के अनुयाई ब्राह्मणों ने दूसरे के विरुद्ध बदनामी और नीचा दिखाने का अभियान छेड़ दिया।

     यह बड़ी रोचक और जानने योग्य बात है कि ब्राह्मणों ने ब्रह्मा के साथ क्या रचना रची? कोई समय था जब ब्रह्मा को सत्ता और गौरव से सर्वोच्च शिखर पर रखा जाता था। उन्होंने ब्रह्मा को जगत का प्रथम प्रजापति कहा। वह उनके साथ एकमेव परमदेव थे। ब्राह्मणों ने अवतारवाद का आविष्कार किया जिसका अर्थ है, भगवान आवश्यकता पड़ने पर मानव अथवा पशु किसी भी रूप में अवतरित हो सकता है। इसके पीछे दो उद्देश्य थे। पहला, भगवान की श्रेष्ठता बताना, जिसमें उनका स्वार्थ हो और दूसरे देवताओं और अन्य व्यक्तियों के बीच संघर्ष को स्वीकार करना।

     ब्राह्मणों ने विभिन्न पुराणों में अवतारों की झड़ी लगा दी, और प्रत्येक पुराण ने विभिन्न अवतारों की अलग-अलग रचना की, जो निम्नांकित सूची में दर्शाया है:

क्र.सं. हरिवंश के
अनुसार
नारायणी
आख्यान के
अनुसार
वाराह
पुराण के
अनुसार
वायु पुराण
के
अनुसार
भागवत् पुराण
के
अनुसार
1. वाराह हंस कूर्म नरसिंह सनत्कुमार
2. नरसिंह कूर्म मत्स्य वामन वाराह
3. वामन मत्स्य वाराह वाराह  
4. परशुराम वाराह नरसिंह कूर्म नरनारायण
5. राम नरसिंह वामन संग्राम कपिल
6. कृष्ण वामन परशुराम आदिवक दत्तात्रेय
7.   परशुराम राम त्रिपुरारी यज्ञ
8.   राम कृष्ण अंधकार रासभ
9.   कृष्ण बुद्ध ध्वज पृथ्वी
10.   कल्कि कल्कि वृत्र मत्स्य
11.       हलाहल कूर्म
12.       कोलाहल धन्वंतरी
13.         मोहिनी
14.         नरसिंह
15.         वामन
16.         परशुराम
17.         वेद व्यास
18.         नरदेव
19.         राम
20.         कृष्ण
21.         बुद्ध
22.         कल्कि

     इन पुराणों में ये सभी अवतार विष्णु के बताए गए हैं। परन्तु आरंभ में जब अवतारों की धारणा शुरू हुई तो दो अवतारों सूकर¹ और मत्स्य² को बाद में विष्णु का अवतार कहा गया है। पहले ये ब्रह्मा के माने जाते थे। जब ब्राह्मणों ने शिव और विष्णु को भी ब्रह्मा के समान पद देना स्वीकार कर लिया तो भी फिर से उन्होंने ब्रह्मा की सत्ता विष्णु और शिव से ऊपर माननी आरंभ कर दी। ब्राह्मणों ने उन्हें शिव³ का जनक बताया और प्रचारित किया कि यदि विष्णु⁴ सृष्टि के पालकर्ता हैं तो वे सभी ब्रह्मा की आज्ञा से ही यह कार्य सम्पादन कर रहे हैं। देवों की एकाधिक संख्या होने के कारण उनके बीच सदैव संघर्ष की स्थिति विद्यमान रहती थी और विवाद निपटाने के लिए किसी मध्यस्थ और निर्णायक देव की आवश्यकता थी ।

     पुराणों में ऐसे संघर्ष, यहां तक देवताओं के बीच युद्धों की कहानियां भी भरी पड़ी हैं। रुद्र और नारायण⁵ के बीच तथा कृष्ण और शिव⁶ के बीच संघर्ष हुआ। इन संघर्षों के समय ब्राह्मणों ने ब्रह्मा को मध्यस्थ बना डाला।

     वही ब्रह्माण, जिन्होंने ब्रह्मा को इतना ऊंचा स्थान दिया था, उसी के पीछे पड़ गए, उन्हें नीचा दिखाने लगे, उन पर कीचड़ उछालने लगे। उन्होंने प्रचार आरम्भ किया कि ब्रह्मा सचमुच शिव और विष्णु से हीन हैं। अपनी पुरानी कथनी के विपरीत ब्राह्मणों ने कहा कि ब्रह्मा शिव से पैदा हुए थे और कुछ ने कहा वह विष्णु⁷ से पैदा हुए थे।

     ब्राह्मणों ने शिव और ब्रह्मा के परस्पर संबंधों को पलट दिया। अब ब्रह्मा के पास मोक्ष देने का अधिकार नहीं रहा। शिव ही मुक्ति दे सकते थे ब्रह्मा एक साधारण देवता बन गए जो अपने मोक्ष⁸ के लिए शिव और शिवलिंग के उपासक हो गए। उन्होंने ब्रह्मा को शिव⁹ का सारथि बना डाला ।

     ब्राह्मणों को ब्रह्मा का स्थान गिराये जाने से अभी संतोष नहीं हुआ था। उन्होंने हद दर्जे तक उनकी बदनामी की। उन्होंने एक कहानी उछाल दी कि ब्रह्मा ने अपनी पुत्री सरस्वती से बलात्कार किया। यह कथा भागवत पुराण¹⁰ में दोहराई गई है¹¹:


1. रामायण- म्यूर द्वारा संस्कृत टैक्स्ट में उद्धृत, खंड 4, पृ. 33
2. महाभारत - वनपर्व एवं लिंग पुराण-म्यूर, वही, पृ. 38-39
3. विष्णु पुराण- म्यूर, वही. पृ. 392
4. रामायण- म्यूर, वही, पृ. 477
5. महाभारत शांति पर्व, म्यूर द्वारा उद्धृत खंड 4, पृ. 240
6. महाभारत शांति पर्व-पू. 279
7. महाभारत अनुशासन पर्व, म्यूर, वही, पृ. 188
8. भागवत पुराण - वही, पृ. 43
9. महाभारत- म्यूर द्वारा संस्कृत टैक्स्ट में उद्धृत, खंड 4, पृ. 192
10. वही, पृ. 193
11. म्यूर संस्कृत टैक्स्ट, खंड 4, पृ. 47


     “हे क्षत्रियो! हमने सुना है कि स्वायंभुव (ब्रह्मा) के मन में अपनी अबला और मोहक पुत्री वाच के प्रति कामुकता जगी, जिसके मन में उनके प्रति कामभाव नहीं था। ऋषियों और मारीचि के नेतृत्व में मुनियों और उनके पुत्रों ने अपने पिता के कुकर्म पर उन्हें फटकारा, "तुमने ऐसा किया जो तुमसे पहले किसी ने नहीं किया, न तुम्हारे बाद कोई ऐसा करेगा।" विधाता होते हुए क्या तुम्हें अपनी पुत्री से विषय भोग करना चाहिए था? अपने उन्माद को क्या तुम रोक नहीं सकते थे ? संसार के तुम्हारे जैसे गौरवशाली व्यक्ति के लिए यह प्रशंसनीय नहीं है। जिनके कार्यों की मर्यादा के कारण व्यक्ति का आनन्द प्राप्त होता है, जिस विष्णु की दीप्ति से यह ब्रह्मांड प्रकाशित होता है, जो उसी से फूटती लौ है, वही विष्णु धर्मपरायणता को बनाए रखे। " अपने पुत्रों के व्यवहार को देखकर, जो प्रजापतियों के स्वामी को ऐसा कह रहे थे, वे शर्म से गढ़ गए और अपने शरीर का विखंडन कर दिया। उसके भयानक अवशेष उस क्षेत्र में फैल गए और वही कोहरे के नाम से विख्यात हुआ । "



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