मानवता की भलाई का संदेश देने वाले 'सत्गुरु रविदास जी महाराज'

    श्री गुरु रविदास जी महाराज का जन्म 1376 ई. भाव 1433 सम्वत् विक्रमी माघ शुक्ल पूर्णिमा प्रविष्टे (15) दिन रविवार को काशी, बनारस में हुआ।

    जिस समय उनका जन्म हुआ, उस समय हर तरफ ऊंच-नीच, जात-पात, भेदभाव का बोलबाला था और कानून जात-पात के नाम पर अत्याचार करना गुनाह नहीं, बल्कि हक और धर्म समझता था। पाखंड, आडम्बरों से भोले-भाले लोगों को भ्रमित कर उन्हें लूटा जाता था। अधिकतर राजा अत्याचारी और विलासी थे।

    ऐसे समय में श्री गुरु रविदास जी महाराज ने अपना पूरा जीवन अपनी विवेक-बुद्धि से परमात्मा की स्तुति करते हुए मनुष्य को सदाचार और मान-सम्मान भरा जीवन जीने का रास्ता दिखाने में बिताया।

Satguru Ravidas Ji Maharaj who gave the message of the welfare of humanity    उन्होंने उस समय के अनेक धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक नेताओं को बिना किसी डर से डंके की चोट पर चुनौती देकर मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य पर किए जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाई और उन्हें गलत काम करने से मना किया, जिसके परिणामस्वरूप उस समय के अनेक राजा गुरु श्री रविदास जी की शरण में आ गए।

    उन्होंने गुरु जी से नाम दान लिया और अपने प्रदेशों में ऐसे कानून खत्म करवाए, जिनके माध्यम से लोगों पर घोर अत्याचार किए जा रहे थे।

    दूसरी ओर गुरु जी ने दबे-कुचले लोगों को अपनी वाणी से साफ और स्पष्ट रूप में जोर देकर कहा कि जिन बुरे हालात में आप अपना जीवन बिता रहे हैं, इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार आप खुद हैं।

   उन्होंने कहा कि एक साजिश के तहत दबे- कुचले लोगों को शिक्षा से वंचित रखा गया है।

   शिक्षा से दूर रहने के कारण ये लोग अपना भला-बुरा भूल गए और इसी कारण इनके जीवन में गिरावट आई तथा धीरे-धीरे ये उन के ही गुलाम हो गए जिन्होंने इन्हें शिक्षा से वंचित रखा और इनकी तथा इनकी आने वाली पीढ़ियों की भी सदियों सदियों की गुलामी निश्चित कर दी।

    गुरु रविदास जी ने दबे-कुचले लोगों को आगे बढ़ने तथा शिक्षा के लिए प्रेरित किया और अपने अधिकारों के लिए खड़े होकर जालिम से लड़ने के लिए तैयार किया।

   "उन्होंने अपने पैरोकारों व पूरे समाज को बेगमपुरा बनाने की अपील की और उन्होंने यह भी संदेश दिया कि जो लोग मेरे बताए हुए 'बेगमपुरा' से सहमत हैं, वे कभी परमात्मा को न भूलें, न ही ये कभी प्रकृति का नुक्सान करें। प्रकृति से हमेशा प्यार करें, कभी बेकार न बैठें, हमेशा अपने काम में व्यस्त रहें और सदैव ऐसे कार्य करें जिनसे सबका भला हो नशों से दूर रहें।

    उन्होंने कहा कि हमें यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि आपके काम से किसी दूसरे मनुष्य का नुक्सान और उसकी आजादी में किसी तरह की बाधान पैदा हो। गुरु महाराज जी का दृष्टिकोण सर्वव्यापी और पूरी कायनात के लिए था।

   आप ने अपने जीवन में हमेशा मनुष्य को प्राथमिकता दी और उसकी भलाई के लिए ही प्रचार-प्रसार किया प्रवचन किए और ऐसे समविचारक महापुरुषों की संगत की, जिनका उद्देश्य भी यही था कि एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य की गुलामी से बचाया जाए तथा हर मनुष्य को मान-सम्मान भरा जीवन जीने का बेहतर अवसर मिले।

   आप जी ने जन्म की बजाय कर्म को महत्व दिया और हमेशा अपने शब्द रूपी प्रचार में कहा कि आदमी जन्म से नहीं, कर्म से महान होता है। ऐसी ही सोच को व्यावहारिक रूप देने के लिए आप जी ने अपनी बाणी के माध्यम से भी समझाया।

    आज देश बड़ी गंभीर समस्याओं से गुजर रहा है, जब नशे व बेरोजगारी की भरमार है। ऐसे में हमें श्री गुरु रविदास जी महाराज की शिक्षाओं से शिक्षा लेकर जहां नशे और बेरोजगारी के विरुद्ध एकजुट होकर प्रयास करने चाहिएं, वहीं उनके बताए मार्ग पर चल कर समानता, न्याय और भाईचारे की नींव को मजबूत करके देश व समाज को उन्नति के मार्ग पर ले जाना चाहिए।

- अजय कुमार

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