झारखंड में 77% आरक्षण पर विधानसभा की मुहर

एससी - एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस कोटा बढ़ाने के लिए कदम  

     रांची, झारखंड में आरक्षण की कुल सीमा को बढ़ाकर 77 फीसदी करने के लिए शुक्रवार को विधानसभा ने मुहर लगा दी। विशेष सत्र में इसके लिए विधेयक पारित कर दिया गया। इसके अलावा 1932 खतियान आधारित स्थानीयता संबंधित विधेयक भी सर्वसम्मति से पारित हुआ।

कुल 77 प्रतिशत कोटा :

Assembly seal on 77 Percent reservation in Jharkhand   विधानसभा में शुक्रवार को झारखंड के पदों और सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022 भी पारित किया गया। इस विधेयक में पिछड़ी जाति का आरक्षण 14 से बढ़कर 27 प्रतिशत किया गया है। इस विधेयक के कानून बनने और नौंवीं अनुसूची में शामिल होने के बाद एसटी को 28, एससी को 12 तथा पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। इसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग को 15 तथा पिछड़ा वर्ग को 12 प्रतिशत कोटा मिलेगा। गरीब सवर्णों को शामिल कर राज्य में कुल 77 प्रतिशत आरक्षण लागू होगा ।

तृतीय- चतुर्थ श्रेणी पदों पर स्थानीय ही पात्रः 1932 खतियान आधारित स्थानीयता के विधेयक के कानून बनने के बाद राज्य के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर उनकी ही नियुक्ति होगी, जो इस विधेयक के अनुसार परिभाषित स्थानीय व्यक्ति होंगे। इस विधेयक में 1932 या उससे पूर्व के सर्वे में वर्णित व्यक्तियों और उनके संतानों को स्थानीय माना गया है। हालांकि, विधेयक में यह प्रावधान भी है कि जिन व्यक्तियों के पास भूमि का ऐसा प्रमाण न हो परंतु वह 1932 से ही झारखंड में रह रहे हों तो उन्हें ग्राम सभा के प्रमाण के आधार पर स्थानीय माना जा सकता है।

   अब 1932 खतियान आधारित स्थानीयता के विधेयक और झारखंड पदों और सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022 को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। दोनों विधेयक पारित होने के साथ विधानसभाध्यक्ष के विस्तारित सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।

निजी क्षेत्र पर भी असर

    झारखंड में अगर आरक्षण के नए स्वरूप को लागू किया जाएगा तो निजी क्षेत्र पर भी इसका असर पड़ेगा।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधेयक के विधानसभा से पास होने पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि इस विधेयक का विस्तार सरकारी ही नहीं बल्कि निजी क्षेत्रों में भी होगा।

अब आगे क्या होगा

    विधानसभा से पारित होने के बावजूद दोनों विधेयक कानून नहीं बनेंगे। ये राज्य में तब तक लागू नहीं होंगे जब तक इन्हें संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जाएगा । इसके लिए विधेयकों को पहले राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। इसके बाद केंद्र सरकार को भेजा जाएगा ।

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