पिछले कुछ दिनों से बिहार की राजनीति में गरमी दिखाई दे रही है। इस गरमी के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जातिगत जनगणना को लेकर बयान आया है, जिसे सियासत में नए भूचाल के रूप में देखा जा रहा है। कुछ लोग मान रहे हैं कि बिहार में समीकरण बदलने वाला है। मगर यदि आपको लगता है कि जातिगत जनगणना कराने से समाज में कलह पैदा होगा, तो यह आपकी नादानी है । संविधान निर्माता डॉ बीआर आंबेडकर ने एक जरूरी लक्ष्य के रूप में 'जाति के उन्मूलन' की बात कही थी । आज सच्चाई यह है कि 20 फीसदी ऊंची जातियां देश की सत्ता और विशेषाधिकार के लगभग 80 प्रतिशत पदों पर काबिज हैं। क्या यह समय नहीं है कि सभी जातियों को उनका उचित अधिकार मिले? जातिगत जनगणना कोई नई मांग नहीं है । भारत के विविधता वाले समाज में इसकी जरूरत है। इससे सरकार जरूरी जानकारी प्राप्त कर सकती है। यह पूरे देश को पता चलना ही चाहिए कि किस जाति की जनसंख्या कितनी है और राजनीतिक व सरकारी नौकरियों में उनकी वाजिब हिस्सेदारी कितनी होनी चाहिए । कुछ लोगों को लगता है कि जातिगत जनगणना करवाने से भारतीय समाज में टकराव पैदा होगा या कम जनसंख्या वाली जातियों पर अधिक जनसंख्या वाली जातियां अत्याचार करेंगी । मगर उन लोगों से पूछना चाहिए कि क्या आज भेदभाव के नाम पर लोगों का उत्पीड़न नहीं होता? कभी किसी दलित को घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया जाता, तो कभी किसी दलित माता को भोजन पकाने से मना किया जाता है। अगर आपको जातिगत जनगणना के कारण समाज में टकराव की चिंता है, तो सबसे पहले आपको जाति के नाम पर रोटी और बेटी का रिश्ता खत्म करना चाहिए । सभी जातियों की समान तरक्की के लिए। जातिगत जनगणना बेहद जरूरी है बिना जातिगत जनगणना से हमें यह ता नहीं चल पाएगा कि कौन सी जाति के लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर है और कौन सी जाति की नहीं । जब यह देश सभी जाति और समाज का है, तो सिर्फ एक समाज के लोगों का प्रतिनिधित्व हर जगह क्यों दिखाई देता है ?
Satyashodhak, obc, Mahatma phule, dr Babasaheb Ambedkar, Bahujan