प्रो. श्रावण देवरे
1991 की जनगणना के समय मंडल आयोग प्रणीत ओबीसी आरक्षण की पिटीशन सुप्रिम कोर्ट में दाखिल हुई इसलिए उस समय जाति जनगणना का मुद्दा कुछ खास आगे नहीं आ पाया । 1999 के आम चुनाव में हम ऐसी अपेक्षा रखते थे कि फिर से ओबीसी की अगुवाई वाली " जाति अंतक-वर्ग अंतक" तीसरे मोर्चे की सरकार बनेगी और भूतपूर्व प्रधानमंत्री देवगोडा सरकार के आदेश के अनुसार 2001 की जनगणना में ओबीसी की जनगणना होगी । और यह अपेक्षा अवास्तविक नहीं थी। क्योंकि देश की राजनीति व सत्तनीति धीरे धीरे ओबीसी प्रभाव से ओबीसी वर्चस्व की तरफ तीव्र गति से अग्रसर थी और इसीलिए 1999 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी डोमिनेटेड जनता दल सबसे बड़ा दल बनकर उभरेगा और फिर से ओबीसी प्रधानमंत्री बनेगा ,यह काले पत्थर की लकीर था और इसलिए ओबीसी की जनगणना होगी ही इसमें किसी को भी किसी प्रकार का संशय नहीं था फिर भी मुंबई हाईकोर्ट में ओबीसी जनगणना की पिटीशन दाखिल की ही गई थी ।
1999 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी पक्ष डोमिनेटेड होगा, ओबीसी प्रधानमंत्री बनेगा इसकी सबसे ज्यादा चिंता संघ-आर एस एस को थी संघ-आर एस एस मतलब परदे के पीछे का वास्तविक सत्ताधारी टोली । उनकी दृष्टि से ओबीसी जनगणना यह जीवन -मरण का प्रश्न था इस प्रश्न को हमने सही ढंग से हल नहीं किया तो अपनी मृत्यु निश्चित है यह देख कर उन्होंने अपनी चाणक्य नीति पर जोर दिया, उनकी दृष्टि से उस समय का टाइम लिमिट का यानी ओबीसी जनगणना ! वह रोकने के लिए 1999 का लोकसभा चुनाव अपने नियंत्रण में आना चाहिए और उन्हें विश्वास हो गया कि यह चुनाव अपने नियंत्रण में लाने के लिए ईवीएम के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं है यह ध्यान में आते ही उन्होंने ईवीएम को मैदान में उतारा और 1999 का चुनाव नियंत्रित करते हुए दिल्ली में वाजपेयी की लंगड़ी सरकार बनवाई ।
अटल सरकार की स्थापना होते ही उसके ऊपर पहली जिम्मेदारी यह थी कि वह देवगोडा सरकार के ओबीसी जनगणना के निर्णय को रद्द करे,अटल सरकार ने कोई अटकलबाजी न करते हुए ताबड़तोड़ ओबीसी जनगणना रद्द करने का महान कार्य पूरा किया इस प्रकार ओबीसी जनगणना के लिए होने वाला जाति युद्ध 10 वर्ष आगे ढकेल दिया गया । इस तरह परदे के पीछे के सत्ताधारी आर एस एस टोली के जान में जान आई, आज का मरण कल पर ढकेला गया। 2001 के जाति युद्ध के अनुभव की वजह से दोनों तरफ की छावनी 2011 के लिए पहले से ही तैयार बैठी थीं।
2011 में ओबीसी जनगणना होनी चाहिए इस मुद्दे को लेकर सभी पार्टियों के ओबीसी सांसद 2009 से ही तलवार में धार देकर खड़े थे इन तलवारों की धार को कुंद करने के लिए संघ-आर एस एस टोली ने भी जबरर्दस्त तैयारी की थी संघ नियंत्रित केजरीवाल ने अण्णा हजारे के नेतृत्व में 'लोकपाल' नाम का नया तमाशा खड़ा कर दिया । लोकपाल के लिए पूरे देश में जगह जगह आंदोलन शुरू हो गया और इस आंदोलन के नीचे ओबीसी जनगणना का मुद्दा दबा दिया गया लोकपाल आंदोलन करके ओबीसी जनगणना के मुद्दे की मिट्टी पलीद करनेवाले केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हुए, मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने दिल्ली में लोकपाल की नियुक्ति की किन्तु नियुक्ति के पांच छः महीने में ही वह लोकपाल अड़चन पैदा करनेवाला सिद्ध हुआ और केजरीवाल ने उसके पिछवाड़े लात मारकर अपमानजनक तरीके से भगा दिया और उसके बाद से आज तक केजरीवाल ने लोकपाल की नियुक्ति नहीं की ।
जिस संघ-भाजपा ने लोकपाल तमाशा प्रायोजित किया था उस संघ-भाजपा की सरकार दिल्ली व अनेक राज्यों में आई किन्तु बीते छ: साल में संघ-भाजपा ने एक बार भी लोकपाल नाम का उच्चार नहीं किया, ओबीसी जनगणना के मुद्दे को दबाने के लिए जो टीवी मीडिया लोकपाल के लिए रात दिन छाती पीट रही थी उस टीवी मीडिया पर पिछले छः सालों में लोकपाल से संबंधित एक भी समाचार नहीं दिखाया गया। 2009-10 के देशव्यापी लोकपाल तमाशा के गहमागहमी में भी ओबीसी सांसदों ने ओबीसी जनगणना की आवाज को दबने नहीं दिया उन्होंने अपनी पार्लियामेंट्री लड़ाई आक्रामक तरीके से लड़ी।
स्मृतिशेष माननीय गोपीनाथ मुंडे जी आर एस एस छावनी के होते हुए भी ओबीसी जनगणना के लिए लोकसभा में एक घंटे का आक्रामक भाषण दिया, यह भाषण मित्र बनकर सर पर बैठे शत्रु पर अचानक हमले जैसा ही था।
मुंडे के गंभीर हमले से तत्कालीन संघ प्रमुख इतने घायल हुए कि उन्हें जल्दबाजी में पत्रकार परिषद बुलाकर ओबीसी जनगणना को समर्थन देने की घोषणा करनी पड़ी, वैसे यह सिर्फ शाब्दिक रूप से पीछे हटना भर था, परदे के पीछे संघ-आर एस एस का दांव-पेंच शुरू ही था।
माननीय छगन भुजबल ने रामलीला मैदान में दस लाख ओबीसी लोगों का सम्मेलन करने की घोषणा की। पार्लियामेंट में ओबीसी सांसदों का तीव्र आक्रमण और प्रत्यक्ष दिल्ली की सड़कों पर आने वाली दस लाख ओबीसी की फौज को देखते हुए परदे के पीछे की सत्ताधारी टोली संघ -आर एस एस की नींद उड़ गई उत्तर में ओबीसी सिपहसालार लालू-मुलायम व दक्षिण में स्वामी पेरियार के डीएमके के सेनापति इन सबके द्वारा चारों तरफ से घेराबंदी करने के बाद तत्कालीन गृहमंत्री प्रणव मुखर्जी ने हथियार डाल दिए और पराभव स्वीकार कर लिया,प्रणव मुखर्जी ने लोकसभा में खड़े होकर घोषणा की कि 2011 की जनगणना में ओबीसी जनगणना करेंगे।
भोलेपन को सद्गुण समझने वाले ओबीसी सांसदों ने ताबड़तोड़ अपनी तलवारें म्यान में रखीं । उसी समय मुझे अनेक ओबीसी कार्यकर्त्ताओं के 'अभिनंदन फोन' आए। किन्तु मैंने स्पष्ट रूप से कहा कि, कुत्ता काटकर खानेवाले संघी प्रणव मुखर्जी पर विश्वास मत करो ।
"मुझसे लड़ने की हिम्मत तो जुटा लोगे !
लेकिन मेरे जैसा कमीनापन कहां से लाओगे ???
मेरे मन को भाया, मैंने कुत्ता काटके खाया !!"
यह डायलॉग फिल्म 'चाइना गेट' के डाकू जगीरा के लिए जितना फिट बैठता है उससे कई गुना ज्यादा संघी ब्राह्मणों के लिए फिट बैठता है । संघ नियंत्रित प्रणव मुखर्जी ने ऐसे ही 'कुत्ता काटकर खाया'।
उसने पार्लियामेंट जैसे पवित्र व सर्वोच्च लोकतंत्र के मंदिर में खड़े रहकर कहा कि "2011 की जनगणना में ओबीसी की जनगणना होगी ! परंतु प्रत्यक्ष में कुछ अलग ही क्रियाकलाप शुरू हो गया । प्रत्येक तीन चार वर्ष में होने वाले नियमित सर्वेक्षण में हम ओबीसी सहित सभी जातियों की 'जाति आधारित जनगणना' कर रहे हैं और उसके लिए स्वतंत्र कानून बना रहे हैं ! ऐसा प्रणव मुखर्जी ने कहा, उसके अनुसार " सामाजिक-आर्थिक जाति आधारित जनगणना-2010 (Social Economical Caste Census-2010) यह नया कानून तैयार किया गया, इस कानून के अनुसार ओबीसी, ओबीसी प्रवर्ग में आने वाली जातियां व अन्य सभी जातियों की जाति आधारित जनगणना होने वाली थी । कितना बड़ा व क्रांतिकारी निर्णय ?
SECC-2010 कानून से सभी खुश हो गए, परंतु इसमें आगे क्या षड्यंत्र कर रखा है यह इन ' अ-फुलेवादी' ओबीसी सेनापतियों को कैसे मालूम पड़ेगा ?
1990 में वी पी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन प्रणीत 27% आरक्षण का अध्यादेश पारित किया और कमंडल के विरोध में लड़ाई जीतने की खुशफहमी में वी पी सिंह झूमने लगे। लेकिन आगे क्या षड्यंत्र होने वाला है यह 'अ- फुले वादी' वी पी सिंह को कैसे मालूम पड़ेगा? कमंडल का गोमूत्र देश भर में छिड़का गया सम्पूर्ण देश हिप्नोटाइज जैसा होकर बाबरी मस्जिद पर टूट पड़ा । बाबरी मस्जिद के मलबे के नीचे मंडल कमीशन प्रणीत सामाजिक ध्रुवीकरण दबा दिया गया, फलस्वरूप वी पी सिंह की व "जाति अंतक - वर्गांतक " गठबंधन की आगे के राजनैतिक युद्ध में आहुति दे दी गई । वी पी सिंह व उनके सरदार फुले -वादी होते तो तत्कालीन जाति युद्ध का परिणाम अलग ही आया होता । 2009-10 में ओबीसी जनगणना का जाति युद्ध लड़ने वाले सरदार फुले- वादी होते तो उन्होंने SECC-2010 इस कानून पर समाधान मानकर तलवार म्यान में नहीं रखे होते । भुजबल, मुंडे, लालू, मुलायम वगैरह सेनापतियों में से एक भी सेनापति फुले- वादी नहीं था और न उन्हें यह पता ही चल सका कि इस जाति युद्ध को लड़ने वाला अपना वास्तविक शत्रु परदे के पीछे से भारत की सत्ता को नियंत्रित व संचालन करनेवाली संघ-आर एस एस टोली है ।
ये संघी टोली एक ही समय में दस मुंह से बोलती है, सैकड़ों हाथों से शस्त्र चलाती है और हजारों पैरों से चाल चलती है । कलम उसके पास सबसे बड़ा व प्रभावी हथियार है , इसीलिए क्रांतिसूर्य ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मणों को 'कलम कसाई' कहा था। तुम इन कसाइयों के विरोध में चुनाव जीत सकते हो, पार्लियामेंट में उन्हें नाकों चने चबवा सकते हो, रास्ते पर लाखों की संख्या में उतरकर उन्हें भयभीत कर सकते हो! यह सब युद्ध हारने के बाद वे अंततः निर्णायक शस्त्र 'कलम' निकालते हैं और एक मिनट में तुम्हें परास्त कर देते हैं।
तुम विजय के उन्माद में जब तलवार म्यान में रखकर नाच रहे होते हो उसी समय वे अपनी कलम ऐसे चलाते हैं कि तुम कैसे काटे गए? कहां काटे गए इसका पता भी नहीं चलता।
ये कलम कसाई प्रशासन में मौके की जगह पर बैठे होने के कारण वे किसी के प्रति जबाबदार भी नहीं हैं। अत्यंत गैर जिम्मेदाराना तरीके से वे अपने ब्राह्मण हित में काम करते हैं।
ओबीसी जनगणना का प्रस्ताव पार्लियामेंट ने मंजूर किया, राष्ट्रपति ने मान्य किया, गृहमंत्री और प्रधानमंत्री ने घोषित किया,सुप्रिम कोर्ट ने आदेशित किया, प्लानिंग कमीशन ने सपोर्ट किया फिर भी इन कलम कसाइयों ने इन सभी संवैधानिक संस्थाओं व संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों का अक्षरशः मानमर्दन करते हुए SECC-2010 यह कानून बनाया और इस पर आधारित आर्थिक-जाति आधारित जनगणना का जो फार्म बनाया गया उसमें ओबीसी का कालम ही नहीं था।
और इस प्रकार से 2011 में ओबीसी नेताओं द्वारा इतना बड़ा युद्ध जीतकर भी दोनों जनगणना में ओबीसी जनगणना हुई ही नहीं।
तुम भोले भाले बहुजन"कुत्ता काटकर खानेवालों" से लड़ ही नहीं सकते।
सभी को जय ज्योति,जय भीम, सत्य की जय हो!
( लेखन 7 मार्च 2020 ) प्रो. श्रावण देवरे मो. 8830127270
Satyashodhak, obc, Mahatma phule, dr Babasaheb Ambedkar, Bahujan