पारंपारीक मराठी साहित्य में ग्रामीण जीवन का चित्रन शहरी वाचकों को भाया है. ग्रामीण जीवन का चित्रण याने ग्रामीण साहित्य नहीं है बल्की ग्रामीणों के शोषण का अंत करनेवाले साहित्य को ही ग्रामीण साहित्य कहा जा सकता है इसी लिए आंबेडकरी साहित्य ही ग्रामीणों के शोषण का अंत करनेंगा यह प्रतिपादन पापल में आयोजित ५ वे आंबेडकरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा. प्रकाश खरात ने किया, मंच पर उद्घाटन डा. वंदना महाजन, अतिथी डा. वामन गवई, डा. सीमा मेश्राम, प्रा. ज्ञानेश्वर खडसे, प्रशांत वंजारे उपस्थित थे. प्रकाश खरात ने कहा की ग्रामीण इन्सान ने व उसके जीवन में सुखलाना यही सच्चे साहित्यिक लेखन कला है. आंबेडकरी साहित्य से मानवी मन व परिवर्तन को महत्व दिया है. उद्घाटक वंदना महाजन ने कहा की सत्य व साहित्य का संबंध होता है. पारंपारिक साहित्य से स्त्रीयों को नहीं चालना मिली है. जाती का प्रश्न हल हुये बगर स्त्रीयों के प्रश्न नहीं सुलझेंगे यह सत्य पारंपारिक ग्रामीण साहित्यों ने स्विकार कर साहित्य बनाना चाहिये. अतिथी डा. गवई ने कहा की आंबेडकरी साहित्य यह आंदोलन से आया साहित्य है. जिसमें से श्रमिकों के दुख उजागर होते है. कार्यक्रम में डा. सीमा मेश्राम, जनार्दन मेश्राम ने सदीच्छा संदेश पठण किया. संचालन अश्विनी गडलिंग व आभार बालू खडसे ने माना. सम्मेलन में परिसर के साहित्य रसिक बडी संख्या में उपस्थित थे.
Satyashodhak, obc, dr Babasaheb Ambedkar, Bahujan, Buddhism