कलियुग समाप्त कब होगा? इस प्रश्न पर महान भारतीय ज्योतिषाचार्य गर्गाचार्य ने अपने ‘सिद्धांत' में प्रकाश डाला है जहां वे कहते हैं कि अशोक के चौथे उत्तराधिकारी मौर्य शासक ने निम्न प्रकार से अपने महत्वूपर्ण विचार प्रकट किये¹:
तब दुष्ट यूनानी योद्धा साकेत, पांचाल और मथुरा को रौंदतें हुए कुसुमध्वज (पटना) पहुंचेंगे। तब पुष्पपुर विजयोपरांत निःसंदेह सभी प्रांतों में अव्यवस्था होगी। अपराजेय यवन मध्यदेश में नहीं रहेंगे। उनके मध्य परस्पर दहशतपूर्ण और भयानक युद्ध होगा। तब यूनानियों के विनाश के पश्चात् युग की समाप्ति पर सात शक्तिशाली राजा अवध पर शासन करेंगे।
महत्वूपर्ण शब्द हैं- “ यूनानियों के विनाश के पश्चात् युग की समाप्ति पर " इन शब्दों से दो प्रश्न उत्पन्न होते हैं- 1. गर्ग के दिमाग में कौन सा युग था ? और 2. भारत में यूनानियों की पराजय कब हुई? इन प्रश्नों के उत्तर में कोई संदेह नहीं है। युग से उनका आशय है कलियुग और यूनानी भारत में 165 ई. पू. में पराजित हुए। यह कोई अटकल बाजी नहीं है। महाभारत के वन पर्व में अध्याय 188 और 190 में स्पष्ट लिखा है 'कलियुग के अंत में बर्बर शक, यवन, बाह्लीक और अन्य जातियां भारतवर्ष को रौंद डालेंगी।
इन दोनों कथनों का यह परिणाम निकलता है कि कलियुग 165 ई. पू. में समाप्त हो गया है। इस निष्कर्ष का बल प्रदन करने के लिए एक तर्क और है। महाभारत के अनुसार कलियुग का समय एक हजार वर्ष था² यदि हम यह स्वीकार करें कि कलियुग 1171 ई. पू. में आरंभ हो गया था। इसमें से यदि एक हजार वर्ष घटा दें तो कलियुग 171 ई. पू. में होना चाहिए। जो गर्ग द्वारा दिए गए ऐतिहासिक तथ्य से बहुत दूर भी नहीं है। इस बात में कोई संदेह नहीं रहना चाहिए कि प्रमुख ज्योतिषाचार्य³ के विचार से कलियुग 165 ई. पू. में समाप्त नहीं हुआ है। हो जाना चाहिए था। परन्तु स्थिति क्या? वैदिक ब्राह्मणों के अनुसार कलियुग समाप्त नहीं हुआ यह जारी है। यह उस “संकल्प” शब्द से स्पष्ट है, जो किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में प्रत्येक हिन्दू आज भी दुहराते हैं। यह संकल्प इस प्रकार है⁴:
“इस शुभ दिन और शुभ मुहुर्त में प्रथम ब्रह्मा के द्वितीय परार्ध में जो श्वेत वाराह कल्प कहलाता है, कलियुग में वैवस्वत मनु के काल में भारत देश के जम्बूद्वीप भरत खंड, में साठ वर्ष के वर्ष चक्र में जो प्राध्व से आरंभ होकर क्षय और अक्षय पर समाप्त होता है और जिसे विष्णु की आज्ञा से अमुक वर्ष दक्षिणी और उत्तरी अयन में अमुक शुक्ल या कृष्ण पक्ष, अमुक तिथि को मैं अमुक (नाम) अनुष्ठान के उद्देश्य से परमपिता के नाम पर संकल्प करता हूं।"
1. सिवीलाइजेशन आफ एंशिएंट इण्डिया नामक अपनी पुस्तक में आर.सी. दास द्वारा उद्धृत।
2. क्रोनोलाजी ऑफ एशिएंट इण्डिया, पृ. 117
3. गर्ग का वक्तव्य महाभारत से लिया गया है जिसमें कलियुग 1000 वर्ष का बताया गया है। इसमें 171 और जोड़ देने पर 1171 बनता है जिसे कलि का आरंभ कहा गया है।
4. श्याम शास्त्री, द्रप्स, पृ. 84
हमारे समक्ष प्रश्न यह है कि वैदिक ब्राह्मण कलि को क्यों जारी रखना चाहते हैं जबकि ज्योतिषाचार्य के अनुसार वह बीत चुका है? पहली बात यह देखनी है कि कलि युग का मूल समय क्या है? विष्णु पुराण के अनुसार :
कृत युग चार हजार वर्ष का है, त्रेता तीन हजार वर्ष का, द्वापर दो हजार वर्ष का और कलियुग एक हजार वर्ष का। ऐसा उनका कथन है कि जो भूतकाल को जानते हैं।
इस प्रकार वास्तविकता यह है कि कलियुग केवल एक हजार वर्ष का होता है। यह स्पष्ट है कि वे वैदिक ब्राह्मणों तक की गणना के अनुसार कलियुग कब का बीत चुका होता। परन्तु अभी नही बीता है। कारण क्या है? यह स्पष्ट है कि कलियुग जितने समय का होना चाहिए उसकी अवधि को बढ़ा दिया गया है। यह दो प्रकार हुआ है।
पहली बात यह कि इसके आदि और अंत में दो समय और जोड़ दिए गए हैं- संध्या और संध्यांश। यह बात विष्णु पुराण में उपरोक्त प्रसंग में कही गई है जो इस प्रकार है:
“युग आरम्भ होने से पूर्व का काल संध्या कहलाता है...... जो युग समाप्ति से पूर्व आता है वह संध्यांश कहलाता है, उसकी अवधि भी उतनी ही होती है। संध्या और संध्यांश के मध्य के काल युग कहलाते हैं, कृत, त्रेता आदि । "
संध्या और संध्यांश की अवधि कितनी होती है? क्या यह प्रत्येक युग के साथ अलग-अलग थी ? संध्या और संध्यांश की अवधि समान नहीं थी । प्रत्येक युग के साथ उनकी अवधि भिन्न है। निम्नांकित तालिका में चार युगों और संध्या तथा संध्यांश की अवधि दी गई है :
महायुग का नाम | काल | संध्या | संध्यांश | योग |
कृतयुग | 4000 | 400 | 400 | 4800 |
त्रेता | 3000 | 300 | 300 | 3600 |
द्वापर | 2000 | 200 | 200 | 2400 |
कलि | 1000 | 100 | 100 | 1200 |
महायुग | - | - | - | 12000 |
कलियुग की आयु 1000 वर्ष बताई जाने के बावजूद आज तक विद्यमान है। संध्या और संध्यांश को जोड़कर इसका काल 1200 वर्ष और बढ़ा दिया गया।
दूसरी बात यह है कि इसमें एक नया अनुसंधान कर लिया गया है। उनका कहना है कि युगों की जो अवधि नियत की गई थी, वह देवताओं के वर्ष के अनुसार है, मानव-वर्षों की तरह नहीं । वैदिक ब्राह्मणों के अनुसार, देवताओं का एक दिन धरती के एक वर्ष के बराबर है। इस प्रकार कलियुग का समय जो 1000 वर्ष और 200 (दो सौ वर्ष था, संध्या और संध्यांश मिलाकर 1200 वर्ष बैठता है, वह अब हो गया (1200x360 ) अर्थात् 4,32,000 वर्ष । जिस कलियुग की समाप्ति की घोषण 165 ईसा पूर्व कर देनी चाहिए थी और जैसा कि ज्योतिषाचार्य ने ही गणना की थी, इस प्रकार वैदिक ब्राह्मणों ने दो प्रकार से उसकी अवधि 4,32,000 वर्ष की कर दी है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि कलियुग अब भी चालू है और लाखों वर्ष तक चलता रहेगा । कलियुग का अंत ही नहीं होगा।