अब तक हमारी चर्चा हिंदू समाज व्यवस्था के मूलभूत तत्वों का वर्णन करने तक सीमित थी। अपने मूल तत्वों के अतिरिक्त हिंदू समाज व्यवस्था की कुछ अनोखी विशेषताएं हैं ये अनोखी विशेषताएं उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितने कि मूल तत्व | हिंदू समाज-व्यवस्था का ऐसा अध्ययन, जिसमें इनका उल्लेख नहीं है, अपूर्ण या असंगत माना जाएगा।
ये विशिष्ट विशेषताएं क्या है? हिंदू समाज-व्यवस्था की विशिष्ट विशेषताएं तीन हैं। इन तीनों में सबसे महत्वपूर्ण विशेषता महामानव ब्राह्मण की पूजा करना है। इस संबंध में हिंदू समाज-व्यवस्था नीत्शे के सिद्धांत को कार्यरूप में परिणत करने के अलावा और कुछ भी नहीं है। तीत्शे ने स्वयं भी कभी महामानव के अपने सिद्धांत की मौलिकता को कोई दावा नहीं किया। उसने यह स्वीकार किया तथा माना कि यह मनुस्मृति से उधार लिया है। अपनी एंटी क्राइस्ट नामक पुस्तक में नीत्शे कहता है:
'आखिरकार, प्रश्न यह है कि झूठ किस उद्देश्य से पोषित किए जाते हैं? यह तथ्य है कि ईसाई धर्म पवित्र उद्देश्यों से शून्य है। इस कारण से मेरी आपत्ति इसके साधनों के संबंध में है। इसके साध्य भी बुरे हैं। विषवमन, जीवन की निस्सारता, शरीर का तिरस्कार, पाप के तिरस्कार द्वारा मनुष्य का पतन तथा स्व-अवमूल्यन - परिणामस्वरूप इसके साधन भी अशुभ हैं। जब मैंने मनु की कानून की पुस्तक को पढ़ा तो इसके बारे में मेरे विचार बिल्कुल विपरीत हो गए। इसका एक ही सांस में बाइबिल के साथ नाम लेना पाप तुल्य होगा। अब आप तुरंत ही अनुमान लगा सकते हैं कि इसके पीछे वास्तविक दर्शन क्यों है इसमें यहूदियों के सड़े रब्बीवाद और अंधविश्वास की केवल दुर्गंध आती है। बल्कि इसमें सर्वाधिक सर्वगुण संपन्नतावादी मनोविज्ञानी की चर्चा भी करने का भी कुछ मसाला मिलता है और इनमें सबसे महत्वपूर्ण बात जो न भूलने योग्य है, वह यह है कि यह बाइबिल के मूलरूप से भिन्न है। इसके माध्यम से कुलीन वर्ग, दर्शनिक तथा योद्धा गण जनता-जनार्दन की रक्षा तथा मार्गदर्शन करते हैं। यह उच्च मूल्यों से सराबोर है । यह पूर्णता की भावना से परिपूर्ण है तथा इसमें जीवन की स्वीकारोक्ति है, स्वयं जीवन के प्रति कल्याण की विजयानभूमि है - कुल मिलाकर यह पुस्तक अति श्रेष्ठ है। प्रसव, औरत, शादी-विवाह संबंधी वे सभी बातें, जो इसाई धर्म में अगाध अश्लीलता से भरी पड़ी हैं, इनको यहां बड़ी सहजता, सम्मान, प्यार तथा विश्वास के साथ वर्णित किया गया है। भला कोई ऐसी पुस्तक को बच्चों या औरतों के हाथ में कैसे दे सकता है, जिसमें अश्लील शब्द भरे पड़े हैं, व्यभिचार रोकने के लिए हरेक आदमी की अपनी पत्नी और हर औरत का अपना पति होना चाहिए ( कामाग्नि) जल जाने से शादी करना ज्यादा बेहतर होता है और जब तक आदमी की उत्पत्ति को ही ईसाई धर्म में न बदल दिया, तब क्या ईसाई होना अच्छी बात है। अर्थात् कुमारी केरी के गर्भाधारण द्वारा कलुकषित किया जाता हैं"।
नीत्शे को कभी भी अपने देश में कोई सम्मानजक या महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हुआ और न लोगों ने उसे गंभीतरता से सुना। उसके अपने ही शब्दों में कभी कुलीन वर्ग तथा सामंत वर्ग के दार्शनिक के रूप में उसका विरोध किया गया, कभी उसकी खिल्ली उड़ाई गई, कभी उस पर दया दिखाई गई तथा कभी एसके अमानवीय प्राणी के रूप में बहिष्कृत किया गया। नीत्शे का दर्शन है सत्तालोलुपता हिंसावृत, आध्यात्मिकता का परित्याग, महामानव के हित में सामान्य जल की दासता और अधोगति। उसके दोषपूर्ण दर्शन ने उसके अपने ही समय के लोगों के दिलो-दिमाग में जुगुप्सा तथा भय उत्पन्न किया था। यदि उसे बहिष्कृत नहीं किया गया तो उसे उपेक्षित तो पूरी तरह से किया गया, और नीत्शे ने स्वयं अपने को मरणोत्तर व्यक्तियों की श्रेणी में रख लिया था। उसने सोचा था कि सदियों के बाद जनता उसके कार्यों के लिए उसकी प्रशंसा करेगी। यहां फिर नीत्शे को निराशा ही हाथ लगी। उसके दर्शन की प्रशंसा होने के बजाए समय के साथ लोगों के मन में नीत्शे के लिए भय और घृणा की भावना बढ़ी। नीत्से के दर्शन की दुष्ट प्रकृति को देखते हुए कुछ लोग तो यह विश्वास भी नहीं करेंगे कि हिंदू समाज व्यवस्था महामानव की पूजा पर आधारित है।
देखें इस विषय में मनुस्मृति क्या कहती है। हिंदू समाज व्यवस्था में ब्राह्मण की स्थिति के बारे में मनु का विचार इस प्रकार है :
1.93 ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने से ज्येष्ठ होने से और वेद के धारण करने से धर्मानुसार ब्राह्मण ही संपूर्ण सृष्टि का स्वामी होता है।
1.94 स्वयंभू उस ब्रह्मान हव्य तथा कव्य को पहुंचाने के लिए और संपूर्ण सृष्टि की रक्षा के लिए तपस्या कर सर्वप्रथम ब्राह्मण को ही अपने मुख से उत्पन्न किया।
1.95 ब्राह्मण के मुख से देवता लोग हव्य तथा पितर लोग कव्य को खाते हैं। अत: ब्राह्मण से अधिक श्रेष्ठ कौन प्राणी होगा।
1.96 भूतों में प्राणधारी जीव श्रेष्ठ है, प्राणियों में बुद्धिजीवी श्रेष्ठ है, बुद्धिजीवियों में मनुष्य श्रेष्ठ है और मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ है।
मनु ने ब्राह्मण के प्रथम श्रेणी में होने के पक्ष में कारण बताते हुए कहा है, चूंकि ईश्वर ने उसे सबसे पहले अपने मुख से पैदा किया है, ताकि देवताओं व पितरों को आहुति दी जा सके। मनु ब्राह्मण के सर्वोपरि होने का दूसरा कारण भी बताता है। वह कहता है :
1.98 केवल ब्राह्मण की उत्पत्ति ही धर्म की नित्य देह है, क्योंकि धर्म की रक्षा के लिए उत्पन्न ब्राह्मण मोक्षलाभ के योग्य होता है।
1.99 उत्पन्न होते ही ब्राह्मण पृथ्वी पर श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि वह धर्म की रक्षा के लिए समर्थ होता है।
मनु इस प्रकार उपसंहार करता है :
1.101 ब्राह्मण अपना ही खाता है अपना ही दान करता है, तथा दूसरे व्यक्ति ब्राह्मण की दया से सबका भोग करते हैं। मनु आगे कहता है :
1.100 विश्व में जो कुछ भी है, वह सब ब्राह्मण का है। अर्थात् ब्राह्मण अच्छे कुल में जन्म लेने के कारण वास्तव में उन सबका अधिकारी होता है। देवत्व से पूर्ण होने के कारण ब्राह्मण कानून और राजा के ऊपर होता है।
मनु आदेश देते हैं:
7.37 राजा प्रात:काल उठकर ऋग्यजुसाम के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मणों की सेवा करें और उनके कहने के अनुसार कार्य करें।
11.35 शास्त्रोक्त कर्मों को करने वाला, पुत्र शिष्यादि का शासन करने वाला प्रायश्चित विधि आदि को कहने वाला ब्राह्मण सबका मित्र रूप है, अतएव उससे अशुभ वचन तथा रूखी बातें नहीं कहनी चाहिएं।
10. 3 जाति की विशिष्टता से उत्पति स्थान की श्रेष्ठता से, अध्ययन, अध्यापन एवं व्याख्यान आदि के द्वारा नियम के धारण करने और यज्ञोपवीत संस्कार आदि की श्रेष्ठता से सब वर्णों में ब्राह्मण ही वर्णों का स्वामी है।
ब्राह्मण या हिंदू समाज व्यवस्था के महामानव को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। प्रथमतः उसे फांसी नहीं दी जा सकती, भले ही उसने हत्या की हो। ¹
1. यह निरापदता 1837 तक ब्रिटिश सरकार द्वारा जारी रखी गई। 1837 में दंड कानून में संशोधन किया गया जिसमें पहली बार यह व्यवस्था की गई कि किसी हत्या के मामले में ब्राह्मण को दोषी पाए जाने पर उसे मृत्यु दंड फांसी दी जा सकती है। यह निरापदता भारतीय राज्यों में अब भी विद्यमान है। त्रावनकोर को दीवान जो ब्राह्मण है, उसने इस विशेषाधिकार को बनाए रखने के कारण जनता की आलोचना से बचने के लिए चतुर तरीका अपनाया। उसने ब्राह्मण को फांसी देने के बजाए मृत्यु दंड की सजा का प्रावधान को ही समाप्त कर दिया।