अधिकार कभी मांगे नहीं जाते हैं बल्कि अधिकार छीने जाते हैं !

    राजतंत्र उसे कहते थे जब तलवार के दम पर राज होता था, जो ताकतवर होता था, संगठित होता था, जिनके पास छल, बल की राजनीति होती थी। वही लोग राजतंत्र मे राज करते थे कि हम ही ताकतवर हैं इसलिए हम ही तुम्हारे ऊपर राज करेगें हम ही निर्धारित करेगें कि तुम्हें कितना रोजगार देना चाहिए? तुम्हें क्या खाना चाहिए, तुम्हें क्या पहनना चाहिए, तुम्हारी भागीदारी कहाँ और कितनी होनी चाहिए, शासन की नीतियां क्या होनी चाहिए, तुम्हारे पर्व क्या होना चाहिए, तुम्हारे ऊपर कितना टैक्स लगाया जाना चाहिए। राज हम लोग करेगें और बाकी उनके कहने के अनुसार मजदूरी करेगें। टैक्स देंगे अंग्रेजों से आजादी के बाद भारत मे लोकतंत्र लागू हुआ। देश सभी लोगों का होता है। सभी लोग संसद मे, न्यायपालिका मे, कार्यपालिका मे और मीडिया में नहीं जा सकते हैं। 130 करोड जनसंख्या संसद में नहीं बैठ सकती है। इसलिए सभी वर्गों से प्रतिनिधि जाना चाहिए। लोकतंत्र जनता की भागीदारी से होता है सभी वर्गों की भागीदारी से होता है यह रिप्रजेंटेटिव डेमोक्रेसी है। हो क्या रहा है ?

Rights are never demanded but rights are snatched away    देश का एक वर्ग जो जनसंख्या मे तो अल्पसंख्यक है परंतु बहुसंख्यक लोगों पर राज करना चाहता है। यह लोकतंत्र में संभव नहीं है। इसलिए उसने अपना तंत्र विकसित किया है। उसे मेरिटोक्रेसी कहते हैं। मेरिटोक्रेसी किसे कहते हैं। हमारे में ही बुद्धि बल है, हमारे ही दिमाग में ताकत है, हम ही सर्वश्रेष्ठ है, हम ही बुद्धिमान हैं। आप मे मेरीट नहीं है। एससी, एसटी, ओबीसी, माईनोरिटीज के लोग बहुत सीधे हैं वह इसका मतलब सीधे सीधे नहीं समझते हैं। वह हमारे को मेरीट को आधार बनाकर कहते हैं तुम लायक नहीं हो। यह बात भी हमारे लोगों को सीधे सीधे समझ नहीं आती है। इसका सीधा मतलब होती है तुम लोग लायक नहीं हो। नालायक लोग हो इसलिए हम ही तुमपर राज करेंगें इसका यह मतलब होता है। सिर्फ और सिर्फ लोकतंत्र मे मेरीट का मतलब यही होता है। हां बस यही बात हमारे लोगों को समझ आती है। इसलिए ब्राह्मण हमारे लोगों को डायरेक्ट नालायक नहीं कहते है। बस वह बड़े प्रेम से कहते हैं। देख भाई तेरे मे मेरीट नहीं है। फिर हमारा उच्च शिक्षित लिखे को पढा काम पर लग जाता है। प्रजातंत्र क्या होता है ? उसकी तो उसे दूर दूर तक जानकारी ही नहीं है। लोकतंत्र मे सभी वर्गों के सही, सच्चे प्रतिनिधि ही संसद मे पहुंचे इसके लिए सभी वर्गों को स्वतंत्रता होती है कि वह अपना प्रतिनिधि स्वंय चुनें ना कि मेरिटोक्रेसी इसमें एक वर्ग जो मात्र 3.5 प्रतिशत है वह छल, बल, कपट से यह साबित करे स्वयं सब साधन संसाधन से युक्त होकर कहे कि हम ही बुद्धिमान हैं यही लोग योग्य है। इसलिए ही उनको चुना है और उसके लिए कोई परिक्षा भी ना हो और वही लोग शासन प्रशासन मे जाकर नीतियाँ बनाए कि हम ही बुद्धिमान हैं। हम ही बताएंगे, बनाएंगे कि देश के लिए क्या नितियाँ होनी चाहिए। जिन लोगों ने देश के लोगों को 6743 जातियों में बांटकर अन्याय, अत्याचार, शोषण, पाखंड के बलपर राज किया और अब लोकतंत्र लागू हो गया तो कह रहे हैं हम ही योग्य हैं, हम ही बुद्धिमान हैं, हम जिनको चुन रहे हैं वही योग्य है, यह दलील ही गलत है। लोकतंत्र जनता कि भागीदारी से होता है। अज्ञानता के बल पर लोगों को लोकतंत्र की जानकारी ना होने के कारण भागीदारी का मतलब ना जानने समझने के कारण ऐसी दलीलें देकर बेवकूफ बनाकर राज कर रहे हैं। लोकतंत्र योग्यता से नहीं बल्कि भागीदारी को कहते हैं। शासन प्रशासन में भागीदारी न्यायपालिका मे भागीदारी कार्यपालिका में भागीदारी मिडिया में भागीदारी को कहते हैं। नहीं तो अंग्रेजों का राज कहां बुरा था ? सभी जगह अंग्रेज राज कर रहे थे वह आज भारत के लोकतंत्र पर कब्जा किये यूरेशियन से बहुत बुद्धिमान थे। वह भी लूट रहे थे और यह भी लूट रहे हैं पहले इंग्लैंड पैसा जा रहा था अब कालेधन के रूप मे स्विट्जरलैंड जा रहा है। देश के हजारों करोड़ रूपये को लूटकर भाग रहे हैं। क्या देश को लूटने वालों मे कोई एससी, एसटी, ओबीसी वर्गों का है ? आजादी के बाद से भारत के लोकतंत्र के चारों पिलर पर इन्हीं वर्गों का राज रहा है और भारत मे 85 प्रतिशत भुखमरी मे सर्वश्रेष्ठ, बेरोजगारी मे सर्वश्रेष्ठ, गरीबी मे सर्वश्रेष्ठ, बीमारी मे सर्वश्रेष्ठ और यूरेशियन लोग देशभर में सबसे अमीर, उनकी कोई नहीं समस्या नहीं है। उनकी एक ही समस्या है कि कैसे मूलनिवासी बहुजनों पर राज स्थापित रखा जावे और कैसे इनको लगातार मेरिटोक्रेसी के नाम पर बेवकूफ बनाकर रखा जाये। देश मे 7 संवैधानिक वर्ग है जो 6743 जातियों में बंटे लोगों का प्रतिनिधित्व करता है (एससी, एसटी, ओबीसी, एनटी, डीएनटी, वीजेएनटी) व समानता को मानने वाले धार्मिक अल्पसंख्यक लोगों का वर्ग इन वर्गों कि भागीदारी / हिस्सेदारी के बिना लोकतंत्र कैसे ? लोकतंत्र भागीदारी का नाम है ना कि राजतंत्र या मेरिटोक्रेसी का नाम है। देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजनों अपनी भागीदारी की लडाई लडे । अधिकार मांगें नहीं जाते हैं, मांगने से सिर्फ भीख मिलती है अधिकार सिर्फ छिने जाते है। संघर्ष से हासिल किए जाते हैं अब सिर्फ एक ही विकल्प बचा है राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन द्वारा विदेशी युरेशियनों से लोकतंत्र को आजाद करवा कर भारत में लोकतंत्र की, रिप्रेजेंटेटिव डेमोक्रेसी की स्थापना करना।

- चौधरी विकास पटेल, राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय पिछडा वर्ग मोर्चा

obc, Mahatma phule, dr Babasaheb Ambedkar, Bahujan, Mandal commission
Share on Twitter
Phule Shahu Ambedkar फुले - शाहू - आंबेडकर
Youtube Educational Histry
यह वेबसाईट फुले, शाहू , आंबेडकर, बहुजन दार्शनिको के विचार और बहुजनसमाज के लिए समर्पित है https://phuleshahuambedkars.com

About Us

It is about Bahujan Samaj Books & news.

Thank you for your support!

इस वेबसाइट के ऊपर प्रकाशित हुए सभी लेखो, किताबो से यह वेबसाईट , वेबसाईट संचालक, संपादक मंडळ, सहमत होगा यह बात नही है. यहां पे प्रकाशीत हुवे सभी लेख, किताबे (पुस्‍तक ) लेखकों के निजी विचर है

Contact us

Abhijit Mohan Deshmane, mobile no 9011376209