आदिवासी महासभा का दावा आदिवासियों के पूर्वज हैं महिषासुर
जमशेदपुर - आदिवासी महासभा ने अपने समाज के लोगों से दुर्गा पूजा को महिषासुर व रावण के शहादत दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है । आदिवासी महासभा के युवा जागरूकता शिविर में इस बाबत प्रस्ताव भी पारित किया गया है जमशेदपुर में हुए इस शिविर में आदिवासी महासभा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुजूर, राष्ट्रीय प्रवक्ता कृष्णा हांसदा समेत देश के सर्वश्रेष्ठ निजी बिजनेस स्कूल एक्सएलआरआइ जमशेदपुर के प्रोफेसर बेंजामिन बाड़ा उपस्थित थे । शिविर में कहा गया कि महिषासुर आदिवासियों के पूर्वज थे और यहां के मल निवासियों के वीर राजा थे । दावा किया गया कि झारखंड के चाईबासा में महिषासुर के असली वंशज आज भी हैं जो अब असर जनजाति के रूप में पहचाने जाते हैं । आदिवासी महासभा के प्रशिक्षण शिविर में आदिवासियों को अपने-अपने घरों में भी रावण व महिषासुर की साधना करने का भी सझाव दिया गया । महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता कृष्णा हांसदा कहते हैं कि शिविर में आदिवासी युवाओं के समक्ष महिषासुर शहादत दिवस का प्रस्ताव इसलिए लाया गया ताकि हम अपने पूज्यनीय पूर्वजों की वास्तविक जानकारी नई पीढ़ी तक पहुंचा सकें। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज व वीर राजा खलनायक के तौर पर लिपिबद्ध किए गए हैं। हमारी नई पीढ़ी को महिषासुर की वीरता की सही जानकारी नहीं मिल पाती है । हांसदा ने कहा कि महिषासुर हमारे पूर्वज हैं और हम उनके वंशज ।
रांची : झारखंड के कई इलाकों में असुर जनजाति के लोग न सिर्फ रावण बल्कि महिषासुर को भी बुराई का प्रतीक नहीं मानते । खुद को रावण व महिषासुर का वंशज बतानेवाली असुर जनजाति के लोग रावण दहन को आज भी गलत मानते हैं ।
झारखंड में यह समुदाय रावण या महिषासुर की पूजा तो नहीं करता, लेकिन खुद को इन दोनों पात्रों से वंशागत रूप से जुड़ा मानता है । इनके इस जुड़ाव की चर्चा किसी बड़े मंच पर तब हुई, जब 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने रावण दहन करने से इन्कार कर दिया था । परंपरागत तौर पर रांची के मोरहाबादी मैदान में मुख्यमंत्री ही रावण, मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतलों में आग लगाकर उनका प्रतीकात्मक वध करते हैं। इस घटना के बाद आदिवासियों के कई संगठन मौके-बेमौके यह आवाज उठाते रहे हैं। अभी हाल में आदिवासी एकता मंच ने इस मामले को फिर उठाया है । रांची विश्वविद्यालय में जनजातीय विभाग के अध्यक्ष डॉ.करमा उरांव बताते हैं कि रावण व महिषासर के मामले को आदिवासी समाज का एक वर्ग अपने प्रति अन्याय के रूप में देखता है ।
आदिवासी साहित्यकार वंदना टेटे बताती हैं कि यूं तो यह असुर समुदाय से जुड़ा मामला है, लेकिन पूरा आदिवासी व जनजातीय समाज महिषासुर को अपना पूर्वज मानता है और शोक मनाता है । संताल समाज में रावण की पूजा की भी परंपरा है । संतालों में रावण नाम रखे जाने की भी परंपरा है । झारखंड के बाहर अन्य प्रदेशों में रावण व महिषासुर की पूजा करने की भी परंपरा देखने को मिलती है ।
Satyashodhak, obc, Mahatma phule, dr Babasaheb Ambedkar, Bahujan