-बिमल मुर्मू, मूसाबानी, झारखण्ड
दुर्गा पूजा आर्य - अनार्य की लड़ाई का अवशेष मात्र है । आदिवासी गाय-भैंस चराने वाले अपने अधिकार के लिए विदेशी आर्यों से संघर्ष किया करते थे । और आर्य छल पूर्वक इनका वध करते थे। यह उसी महिषासुर की कहानी है जिन्होंने आर्यों को लोहे के चने चबाने पर मजबूर किया किन्तु आयों ने एक दुर्गा नाम कि सुंदर कन्या भेजी जो शस्त्रों को छुपाये हुई थी । न्यायप्रिय महाप्रतापी महिषासुर महिलाओं पर शस्त्र नहीं उठाता था । मौका देखकर दुर्गा ने छल पूर्वक महिषासुर का बध कर दिया । झारखंड के आदिवासी समाज में आज भी इस मौके पर शेर का सिर काट कर अपने द्वार पर रखने कि प्रथा है ।
दुखद पहलू यह है कि इस अवसर पर उसी चरवाहा जाति यादव, अहिर, गोप, मंडल, राउत, घोष, राय, गोपाल, पाल के द्वारा एवं समस्त ओबीसी, दलित समाज द्वारा इसका बहिष्कार न कर अपने ही पूर्वजों की हत्या का जश्न मनाया जाता है । और वे ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन स्वयं करते है । शायद 85% मूलवासियों के गुलाम रहने का कारण यहीं है। यानी ब्राम्हणवाद हमारे ही पूर्वजों के कत्ल का जश्न इन पूजा के रूप में हमसे ही मनवाते है ।
छत्तीसगढ़, झारखंड, बंगाल, मध्यप्रदेश में असुर नाम की आदीवासी जाति आज भी मौजूद है," st list देख सकते हैं । सोचिये उन आदिवासियों पर क्या गुजरती होगी ।
-बिमल मुर्मू, मूसाबानी, झारखण्ड
Satyashodhak, obc, Mahatma phule, dr Babasaheb Ambedkar, Bahujan