ग्वालियर, मई 2025: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में संभवतः पहला मौका है, जब कुछ वकीलों ने बाबासाहेब की प्रतिमा स्थापना का विरोध किया। इस विरोध ने न केवल वैचारिक टकराव को उजागर किया, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था में गहरे पैठे जातिवादी पूर्वाग्रहों को भी सामने ला दिया। हालांकि, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश श्री सुरेश कैत, जो स्वयं अनुसूचित जाति समुदाय से हैं, ने स्पष्ट आदेश जारी कर इस विवाद का अंत किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का उदाहरण देते हुए कहा कि जब देश के सर्वोच्च न्यायालय में बाबासाहेब की प्रतिमा स्थापित हो सकती है, तो उच्च न्यायालयों में भी उनका स्मारक स्थापित करना स्वाभाविक और उचित है।
यह निर्णय आंबेडकरवादी विचारधारा के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है। मुख्य न्यायाधीश के इस कदम से पहले आंबेडकरवादी वकीलों ने एक आवेदन दायर कर प्रतिमा स्थापना की मांग की थी। इस मांग को बल मिला जब 14 अप्रैल को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में पहली बार बाबासाहेब की जयंती को आधिकारिक रूप से मनाया गया, जो मुख्य न्यायाधीश कैत के नेतृत्व में संभव हुआ। यह आयोजन न केवल बाबासाहेब के योगदान को सम्मानित करने का अवसर था, बल्कि सामाजिक न्याय और समता के प्रति हाईकोर्ट की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।
विरोध करने वालों में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पवन पाठक का नाम प्रमुखता से सामने आया। उन्होंने न केवल प्रतिमा स्थापना का विरोध किया, बल्कि आपत्तिजनक बयान देकर आंबेडकरवादी संगठनों को धमकाने की कोशिश की। एक अन्य वकील ने इसे 'सनातन विरोधी' करार देकर सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया। यह उल्लेखनीय है कि जब जयपुर हाईकोर्ट में मनु की मूर्ति स्थापित की गई थी, तब किसी ने विरोध नहीं किया, लेकिन बाबासाहेब की प्रतिमा की बात आई तो कुछ वकील सामंतवादी और मनुवादी मानसिकता के साथ खड़े हो गए। इसके बावजूद, आंबेडकरवादी वकीलों ने संयम और संवैधानिक रास्ते का पालन करते हुए अपना संघर्ष जारी रखा।
आंबेडकरवादी वकीलों का कहना है कि जब अदालत का आदेश और अनुमति मौजूद है, तो मूर्ति स्थापना में बाधा डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह भूमि सरकारी है, न कि किसी निजी व्यक्ति की। यदि कुछ लोग अपनी जातिवादी सोच के कारण बाबासाहेब की प्रतिमा का विरोध कर रहे हैं, तो यह भारतीय संविधान और सामाजिक न्याय की भावना का अपमान है। ऐसे लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई आवश्यक है, ताकि भविष्य में कोई भी संविधान निर्माता के सम्मान को चुनौती न दे। मुख्य न्यायाधीश का आदेश स्पष्ट है- बाबासाहेब की प्रतिमा स्थापित होगी।
यह निर्णय न केवल मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के लिए, बल्कि पूरे देश की न्याय व्यवस्था के लिए एक मिसाल है। यह कदम बाबासाहेब के सामाजिक समता, न्याय और समावेशिता के विचारों को और मजबूत करेगा। आंबेडकरवादी संगठनों और कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया है।
Satyashodhak, dr Babasaheb Ambedkar, Bahujan