पहली मुस्लिम शिक्षिका फातिमा शेख जन्मदिन ( जन्म - ९ जानेवारी १८३१ (पुणे), स्मृती - ९ ऑक्टोबर १९०० ), जिन्होंने क्रांतिसूर्य ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर लडकियो मे डेढ सौ वर्ष पहले शिक्षा की मशाल जलाई। आज से लगभग 150 सालो तक भी शिक्षा बहुसंख्य लोगो तक नही पहुंच पाई थी जब विश्व आधुनिक शिक्षा मे काफी आगे निकल चुका था, लेकिन भारत मे बहुसंख्य लोग शिक्षा से वंचित थे। लडकियो की शिक्षा का तो पूछो मत क्या हाल था। ज्योतिराव फुले पूना (अब पुणे) मे 11 एप्रिल 1827 मे पैदा हुए। उन्होंने बहुजनो की दुर्गति को बहुत ही निकट से देखा था। उन्हे पता था कि बहुजनो के इस पतन का कारण शिक्षा की कमी। इसी लिए वे चाहते थे कि बहुसंख्य लोगो के घरो तक शिक्षा का प्रचार प्रसार होना ही चाहिए। ज्योतिराव फुले लडकियो के शिक्षा के जबरदस्त पक्षधर थे। इसका आरंभ उन्होंने अपने घर से ही किया। उन्होंने सबसे पहले अपनी संगिनी सावित्रीबाई को शिक्षित किया। शिक्षित बनाकर अपने कार्य को और भी आगे ले जाने की तैयारियो मे जुट गए। यह बात उस समय के सनातनियो को बिलकुल भी पसंद नही आई। उनका चारो ओर से विरोध होने लगा। फिर भी अपने कार्य को मजबूती से करते रहे। ज्योतिराव नही माने तो उनके पिता गोविंदराव पर दबाव बनाया गया। अंततः पिता को भी प्रस्थापित व्यवस्था के सामने विवश होना पडा। मजबूरी मे ज्योतिराव फुले को अपना घर छोडना पडा। उनके एक दोस्त उस्मान शेख पूना के गंज पेठ मे रहते थे। उन्होंने ज्योतिराव फुले को रहने के लिए अपना घर दिया। यही ज्योतिराव फुले ने 1848 मे अपना पहला स्कूल शुरू किया। उस्मान शेख भी लडकियो की शिक्षा के महत्व को समझते थे। उनकी एक बहन फातिमा थी, जिसे वे बहुत चाहते थे। उस्मान शेख ने अपनी बहन के दिल मे शिक्षा के प्रति रुचि निर्माण की। सावित्रीबाई के साथ वह भी लिखना पढ़ना सीखने लगी। बाद मे उन्होंने शैक्षिक सनद प्राप्त की । क्रांतिसूर्य ज्योतिराव फुले ने लडकियो के लिए कई स्कूल कायम किए। सावित्रीबाई और फातिमा ने वहां पढाना शुरू किया। वो जब भी रास्ते से गुजरती तो लोग उनकी हंसी उडाते और उन्हे पत्थर मारते। दोनो इस ज्यादती को सहन करती रही लेकिन उन्होंने अपना काम बंद नही किया। फातिमा शेख के जमाने में लडकियो की शिक्षा मे असंख्य रुकावटे थी। ऐसे जमाने मे उन्होंने स्वयं शिक्षा प्राप्त की। दूसरो को लिखना पढना सिखाया। वे शिक्षा देने वाली पहली मुस्लिम महिला थी, जिनके पास शिक्षा की सनद थी। फातिमा शेख ने लडकियो की शिक्षा के लिए जो सेवाएं दी उसे भुलाया नही जा सकता। घर-घर जाना, लोगो को शिक्षा की आवश्यकता समझाना, लडकियो को स्कूल भेजने के लिए उनके अभिभावको की खुशामद करना, फातिमा शेख की आदत बन गई थी। आखिर उनकी मेहनत रंग लाने लगी। लोगो के विचारो मे परिवर्तन आया। वे अपनी घरो की लडकियो को स्कूल भेजने लगे। लडकियो मे भी शिक्षा के प्रति रूचि निर्माण होने लगी। स्कूल मे उनकी संख्या बढती गयी। मुस्लिम लडकिया भी खुशी खुशी स्कूल जाने लगी। विपरीत परिस्थितियो मे प्रस्थापित व्यवस्था के विरोध मे जाकर शिक्षा के महान कार्य मे ज्योतिराव एवं सावित्रीबाई फुले को मौलिकता के साथ सहयोग देने वाली एक वीर मानवतावादी शिक्षिका फातिमा शेख को दिल से सलाम ।