- अनिल भुसारी
उत्तर भारतात संतांनी विषमते विरुद्ध चळवळ केली तिला 'भक्ती चळवळ', तर महाराष्ट्रात या चळवळीस 'वारकरी चळवळ' म्हणतात. इ.स. बाराशेच्या दरम्यान या चळवळीचा पाया संत नामदेवांनी रचला. संत नामदेव हे महाराष्ट्रातील असले, तरी त्यांचा प्रभाव उत्तर भारतातील भक्ती चळवळ आणि शीख धर्मावर
जाति अंत का सवाल दिल्ली दरबार में दाखिल - प्रोफे. श्रावण देवरे
जाति अंत का एजेंडा राष्ट्रीय स्तर पर एजेंडे के रूप में न आने पाए इसके लिए ब्राह्मणी छावनी सतत दांवपेंच व षड्यंत्र रचती आई है। 1947 तक अंग्रेज शासन में होने के कारण फुले, शाहू, पेरियार व अंबेडकर आदि को जाति अंत का सवाल राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना
जातिप्रथा और उन्मूलन - महात्मा गांधी को दिया गया उत्तर - लेखक - डॉ. भीमराव अम्बेडकर
जातिप्रथा - उन्मूलन
द्वितीय संस्करण की प्रस्तावना
लाहौर के जातपांत तोड़क मंडल के लिए जो भाषण मैंने तैयार किया था, उसका हिन्दू जनता द्वारा अपेक्षाकृत भारी स्वागत किया गया। यह भाषण मैंने मुख्य रूप से इन्हीं लोगों के लिए
हिंदू समाज की वर्तमान उथल-पुथल का कारण है, आत्म-परिरक्षण के भावना। एक समय था, जब इस समाज के अभिजात वर्ग को अपने परिरक्षण के बारे में कोई डर नहीं था। उनका तर्क था कि हिंदू समाज एक प्राचीनतम समाज है, उसने अनेक प्रतिकूल शक्तियों के प्रहार को झेला है, अतः उसकी सभ्यता और संस्कृति में निश्चय ही कोई अंतर्निहित
जैसा कि मैं प्रथम निबंध (‘भारत में जातिप्रथा') में बता चुका हूं, कोई जाति एकल संख्या में नहीं हो सकती। जाति केवल बहुसंख्या में ही जिंदा रह सकती है। वास्तव में तो जाति समूह का विखंडन करके ही बनी रह सकती है। जाति की प्रकृति ही विखंडन और विभाजन करना है। जाति का यह अभिशाप भी है, लेकिन फिर भी कुछ लोग ही जानते