हिंदू समाज की वर्तमान उथल-पुथल का कारण है, आत्म-परिरक्षण के भावना। एक समय था, जब इस समाज के अभिजात वर्ग को अपने परिरक्षण के बारे में कोई डर नहीं था। उनका तर्क था कि हिंदू समाज एक प्राचीनतम समाज है, उसने अनेक प्रतिकूल शक्तियों के प्रहार को झेला है, अतः उसकी सभ्यता और संस्कृति में निश्चय ही कोई अंतर्निहित
जैसा कि मैं प्रथम निबंध (‘भारत में जातिप्रथा') में बता चुका हूं, कोई जाति एकल संख्या में नहीं हो सकती। जाति केवल बहुसंख्या में ही जिंदा रह सकती है। वास्तव में तो जाति समूह का विखंडन करके ही बनी रह सकती है। जाति की प्रकृति ही विखंडन और विभाजन करना है। जाति का यह अभिशाप भी है, लेकिन फिर भी कुछ लोग ही जानते
कार्ल मार्क्स तथा बुद्ध में तुलना करने के कार्य को कुछ लोगों द्वारा एक मजाक माना जाए, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। मार्क्स तथा बुद्ध के बीच 2381 वर्ष का अंतर है। बुद्ध का जन्म ई. पू. 563 में हुआ था और कार्ल मार्क्स का जन्म सन् 1818 में हुआ। कार्ल मार्क्स को एक नई विचारधारा व नए मत-राज्य शासन का व एक नई आर्थिक व्यवस्था
लेखक - डॉ. भीमराव अम्बेडकर
भारत में जातिप्रथा संरचना, उत्पत्ति और विकास
9 मई, 1916 को कोलंबिया यूनिवर्सिटी, न्यूयार्क, अमरीका, में आयोजित
डॉ. ए. ए. गोल्डनवाइजर गोष्ठी में नृविज्ञान पर पठित लेख
भारत में जातिप्रथा
मैं निःसंकोच कह सकता हूं कि हममें से बहुत लोगों ने स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय
धाराशिव - स्वतःच्या पेन्शनच्या पैश्यातून डॉ बाबासाहेब आबेडकर यांची जयंतीची मिरवणूक काढून आगळेवेगळे अभिवादन सेवानिवृत्त सफाई कामगार जगन अंबादास बनसोडे यांनी केले आहे. त्यामुळे या जयंतीने अनेकांना आकर्षीत तर केलेच, शिवाय अशा पद्धतीने जयंती साजरी करता येऊ शकते याचा आदर्श निर्माण केला आहे. धाराशिव