Phule Shahu Ambedkar फुले - शाहू - आंबेडकर
Phule Shahu Ambedkar
Youtube Educational Histry
यह वेबसाईट फुले, शाहू , आंबेडकर, बहुजन दार्शनिको के विचार और बहुजनसमाज के लिए समर्पित है https://phuleshahuambedkars.com

बौद्ध धर्म की अवनति तथा पतन ( भाग 1 ) - लेखक - डॉ. भीमराव आम्बेडकर

    डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अंग्रेजी में लिखित 'रिवोल्यूशन एंड काउंटर-रिवोल्यूशन' विषयक शोध के एक अंग के रूप में 'दि डिक्लाइन एंड फाल आफ बुद्धिज्म' ( बौद्ध धर्म की अवनति तथा पतन) शीर्षक लेख लिखा था। उनके कागजों में उसके केवल पांच पृष्ठ मिले, जिन्हें संशोधित भी नहीं किया गया था। डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर सोर्स मैटिरियल पब्लिकेशन कमेटी को इस निबंध की प्रति श्री एस. एस. रेगे से मिली, जिसमें डॉ. अम्बेडकर द्वारा यत्र तत्र अपनी कलम से किए गए कुछ संशोधन मिलते हैं। अंग्रेजी में यह निबंध अट्ठारह टकित पृष्ठों में है - संपादक

I


    भारत से बौद्ध धर्म के लोप हो जाने पर उन सभी लोगों को अत्यधिक आश्चर्य होता है, जिन्होंने इस विषय पर कुछ चिंतन किया है और उन्हें इसकी ऐसी स्थिति देखकर दुख भी होता है। परंतु यह चीन, जापान, बर्मा, स्याम, इंडोचीन, श्रीलंका तथा मलाया द्वीप समूह में कहीं-कहीं अभी भी विद्यमान है। केवल भारत में ही इसका अस्तित्व नहीं रहा है। भारत में केवल इसका अस्तित्व ही समाप्त नहीं हुआ, बल्कि बुद्ध का नाम भी अधिकांश हिंदुओं के दिमाग से निकल गया है। ऐसा कैसे हो गया, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। इस प्रश्न का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता है। केवल यही बात नहीं है। कि इसका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं है, बल्कि किसी भी व्यक्ति ने इसके संतोषजनक उत्तर को ढूंढने का प्रयास भी नहीं किया है। इस विषय पर विचार करते समय लोग एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंतर को भूल जाते हैं। यह अंतर बौद्ध धर्म की अवनति और पतन के बीच का है। दोनों में अंतर रखना आवश्यक है। बौद्ध धर्म का पतन एक ऐसी बात है जो उन कारणों से भिन्न है, जिनसे इसकी अवनति हुई। पतन के कारण तो बिल्कुल स्पष्ट हैं, जब कि अवनति के कारण उतने स्पष्ट नहीं हैं।

     इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में बौद्ध धर्म का पतन मुसलमानों के आक्रमणों के कारण हुआ था । इस्लाम 'बुत' के शत्रु के रूप में प्रकट हुआ।  'बुत' शब्द, जैसा कि लोग जानते हैं, अरबी भाषा का शब्द है और इसका अर्थ 'मूर्ति' है। तथापि, बहुत से लोगों को यह पता नहीं है कि 'बुत' शब्द की व्युत्पत्ति कहां से हुई है। 'बुत' शब्द अरबी भाषा में बुद्ध का बिगड़ा हुआ रूप है। इस प्रकार इस शब्द की व्युत्पत्ति से यह पता चलता है कि मुसलमान विचारकों की दुष्टि में मूर्तिपूजा और बौद्ध धर्म, दोनों एक-दूसरे के पर्याय हैं। मुसलमानों के लिए मूर्तिपूजा तथा बौद्ध धर्म एक जैसे ही थे। इस प्रकार मूर्तिभंजन करने का लक्ष्य, बौद्ध धर्म को नष्ट करने का लक्ष्य बन गया। इस्लाम ने बौद्ध धर्म को केवल भारत में ही नष्ट नहीं किया, बल्कि वह जहां भी गया, वहीं उसने बौद्ध धर्म को मिटाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इस्लाम धर्म के अस्तित्व में आने से पहले बौद्ध धर्म बैक्ट्रिया, पार्थिया, अफगानिस्तान, गांधार तथा चीनी तुर्किस्तान का धर्म था और एक प्रकार से यह धर्म समूचे एशिया में फैला हुआ था।¹ इन सब देशों में इस्लाम ने बौद्ध धर्म को नष्ट किया। जैसा कि विन्सेंट स्मिथ² ने कहा है:

    “मुसलमान आक्रमणकारियों ने अनेक स्थानों पर जो भीषण हत्याकांड किए, वे रूढ़िवादी हिंदुओं द्वारा किए गए अत्याचारों से कहीं अधिक प्रबल थे और भारत के कई प्रांतों से बौद्ध धर्म के लुप्त होने के लिए भारी जिम्मेदार हैं। "

Decline and Fall of Buddhism - dr Bhimrao Ramji Ambedkar    इस स्पष्टीकरण से सब लोग संतुष्ट नहीं होंगे। यह पर्याप्त नहीं लगता। इस्लाम ने ब्राह्मणवाद तथा बौद्ध धर्म, दोनों पर आक्रमण किया। यह पूछा जा सकता है कि उनमें से एक जीवित क्यों रहा और दूसरा नष्ट क्यों हो गया? यह तर्क युक्तिसंगत तो लगता हैं, परंतु इससे उक्त सिद्धांत का खंडन नहीं होता । ब्राह्मणवाद जीवित रहा तथा उसका अस्तित्व बना रहा। इस बात को स्वीकार करने का अभिप्राय यह नहीं है कि बौद्ध धर्म का पतन इस्लाम की तलवार की धार, अर्थात उनके आक्रमणों के कारण नहीं हुआ। इसका अभिप्राय केवल यह है कि उस समय कुछ ऐसी परिस्थितियां थीं, जिनके कारण इस्लाम के आक्रमण के सामने ठहरना व जीवित रहना ब्राह्मणवाद के लिए तो संभव था, लेकिन बौद्ध धर्म के लिए असंभव हो गया था ।

    जो लोग इस विषय पर और अधिक विचार करेंगे, उनको यह पता चलेगा कि उस समय तीन ऐसी विशेष परिस्थितियां थीं, जिन्होंने मुस्लिम आक्रमणों के संकट के सामने ब्राह्मणवाद को टिका व बने रहना संभव और बौद्ध धर्म के लिए असंभव बना दिया था। पहली बात तो यह है कि मुस्लिम आक्रमणों के समय ब्राह्मणवाद को राज्य की सहायता व समर्थन प्राप्त था। बौद्ध धर्म को ऐसी कोई सहायता व समर्थन प्राप्त नहीं था । तथापि, जो बात अधिक महत्वपूर्ण है, वह यह है कि ब्राह्मणवाद को राज्य की सहायता व समर्थन तब तक प्राप्त रहा, जब तक इस्लाम एक शांत धर्म के रूप में विकसित नहीं हुआ और उसके अंदर मूर्तिपूजा के विरुद्ध एक लक्ष्य के रूप में प्रारंभ में उन्माद की जो ज्वाला जल रही थी, वह समाप्त नहीं हुई। दूसरी बात यह है कि इस्लाम की तलवार ने बौद्धों के पौरोहित्य को बुरी तरह नष्ट कर दिया और उसे फिर से जीवित नहीं किया जा सका । इसके विपरीत ब्राह्मणवादी पौरोहित्य को मिटाना व नष्ट करना इस्लाम के लिए संभव नहीं हुआ। तीसरी बात यह है कि भारत के ब्राह्मणवादी शासकों ने बौद्ध जनसाधारण पर अत्याचार किए। उनके इस अत्याचार व उत्पीड़न से बचने के लिए भारत के बौद्ध लोगों को बहुत बड़ी संख्या में इस्लाम को अंगीकर करना पड़ा और उन्होंने बौद्ध धर्म को सदा के लिए छोड़ दिया।


1. आधुनिक अनुसंधानों से पता चलता है कि बौद्ध धर्म यूरोप में फैल गया था और ब्रिटेन में सैल्ट बौद्ध थे। देखिए, डोनाल्ड ए, मैकेंजी की पुस्तक बुद्धिज्म इन प्री-क्रिश्चियन ब्रिटेन
2. अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया (1924)


    इनमें से कोई भी ऐसा तथ्य नहीं है, जिसकी पुष्टि इतिहास न करता हो ।

    भारत के जो प्रांत मुस्लिम प्रभुत्व व शासन के अधीन आए थे, उनमें सिंध पहला प्रांत था। इस प्रांत पर पहले एक शूद्र राजा का शासन था । परंतु बाद में उसे एक ब्राह्मण ने अपने राज्य में मिला लिया। वहां उसके वंश का शासन रहा । सन् 712 में जब इब्ने कासिम द्वारा सिंध पर आक्रमण किया गया तो उस समय उसके द्वारा ब्राह्मणवादी धर्म की सहायता करना स्वाभाविक था। सिंध का शासक दाहिर था । इस दाहिर का संबंध ब्राह्मण शासकों के वंश से था ।

    ह्वेनसांग ने स्वयं अपनी आंखों से यह देखा था कि उसके समय में पंजाब पर एक क्षत्रिय बौद्ध राजवंश का शासन था। इस राजवंश ने पंजाब पर लगभग सन् 880 तक शासन किया। इसके बाद उस राज्य को लल्लिया नामक एक ब्राह्मण सेनाध्यक्ष ने अपने अधीन कर लिया था, जिसने ब्राह्मणशाही राजवंश की स्थापना की। इस वंश ने पंजाब पर सन् 880 से 1021 तक शासन किया। इस प्रकार यह दिखाई पड़ेगा कि जिस समय सुबुक्तगीन तथा मौहम्मद ने पंजाब पर आक्रमण आरंभ किए थे, तब-तब देशी शासक ब्राह्मण धर्मावलंबी थे और जयपाल (960-980 ई.), आनंदपाल (980-1000 ई.) तथा त्रिलोचनपाल (1000-21 ई.) ब्राह्मण धर्मावलंबी शासक थे। सुबुक्तगीन तथा मौहम्मद के साथ इनके संघर्ष के बारे में हमने बहुत पढ़ा है।

    मध्य भारत मुस्लिम आक्रमणों से ग्रस्त रहने लगा था। ये आक्रमण मौहम्मद के समय से आरंभ हुए थे और शहाबुद्दीन गौरी के नेतृत्व में जारी रहे। उस समय मध्य भारत में अलग-अलग राज्य थे। मेवाड़ ( अब उदयपुर ) पर गहलौतों का शासन था, सांभर (अब बूंदी, कोटा तथा सिरोही में विभक्त) पर चौहानों का शासन था, कन्नौज ¹ पर प्रतिहार, धार पर परमार, बुंदेलखंड पर चंदेल, अन्हिलवाड़ पर चावड़ा और चेदि पर कलचुरि शासन करते थे। इन सभी राज्यों के शासक राजपूत थे और राजपूत कुछ कारणों से, जो रहस्यपूर्ण हैं और जिनकी मैं बाद में चर्चा करूंगा, ब्राह्मणवादी धर्म के सबसे कट्टर समर्थक हो गए थे।


1. कन्नौज में कुछ नहीं बचा था। यद्यपि पृथ्वीराज ने बड़ी वीरता से उसकी रक्षा की थी, परंतु मौहम्मद ने इसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया था।



Share on Twitter

You might like This Books -

About Us

It is about Bahujan Samaj Books & news.

Thank you for your support!

इस वेबसाइट के ऊपर प्रकाशित हुए सभी लेखो, किताबो से यह वेबसाईट , वेबसाईट संचालक, संपादक मंडळ, सहमत होगा यह बात नही है. यहां पे प्रकाशीत हुवे सभी लेख, किताबे (पुस्‍तक ) लेखकों के निजी विचर है

Contact us

Abhijit Mohan Deshmane, mobile no 9011376209