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प्रस्तुत अध्याय की मूल अंग्रेजी में टाइप की हुई दो प्रतिलिपियां हैं। दोनों प्रतिलिपियों में बाबासाहेब की लिखावट में कुछ वृद्धि तथा संशोधन किया गया है। विचार करने के बाद निर्णय लिया गया कि बाद की प्रतिलिपि को छापा जाए । यह निबंध जो मात्र तीन पृष्ठ का है, किसी अधिक बड़े विषय की प्रस्तावना प्रतीत होता है, जो संभवतः डॉ. अम्बेडकर के मस्तिष्क में था - संपादक
प्राचीन भारत के इतिहास का काफी हिस्सा बिल्कुल भी इतिहास नहीं है। ऐसा नहीं है कि प्राचीन भारत बिना इतिहास के है। प्राचीन भारत का बहुत सारा इतिहास है। लेकिन वह अपना स्वरूप खो चुका है। महिलाओं और बच्चों का मनोरंजन करने के लिए इसे पौराणिक आख्यान बना दिया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि ब्राह्मणवादी लेखकों ने जान-बूझकर ऐसा किया है। 'देव' शब्द को लीजिए। इसका क्या अर्थ है ? क्या ‘जन-विशेष' शब्द मानव परिवार के एक सदस्य का निरूपण करने के लिए प्रयुक्त हुआ है? यह महामानव वर्ग के निरूपण के लिए प्रयुक्त हुआ है। इस प्रकार इतिहास का सार दबा दिया गया है।
'देव' शब्द के साथ-साथ यक्ष, गण, गंधर्व, किन्नर नामों का भी उल्लेख है। वे कौन थे? महाभारत और रामायण पढ़ने के बाद समझ में आता है कि ये काल्पनिक मानव थे, जिनका वास्तव में कोई अस्तित्व ही नहीं था।
लेकिन यक्ष, गण, गंधर्व, किन्नर भी मानव परिवार के सदस्य थे। वे देवों की सेवा में थे। यक्ष महलों की पहरेदारी करते थे। गण देवों की रक्षा करते थे। गंधर्व संगीत और नृत्य द्वारा देवों का मनोरंजन किया करते थे। किन्नर भी देवताओं की सेवा में थे । किन्नरों के वंशज आज भी हिमाचल प्रदेश में रहते हैं।
'असुर' नाम को लीजिए । असुर का वर्णन महाभारत और रामायण में जिस प्रकार किया गया है, उससे समझ में आता है कि जैसे ये मानव-रहित दुनिया में रहते हैं। असुर का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि वे दस बैलगाड़ी-भर भोजन करते हैं। वे दैत्य के आकार के हैं। वे छह माह तक सोते हैं। उनके दस मुख हैं। राक्षस कौन हैं? उन्हें भी अमानवीय प्राणी बताया गया है। आकार में भोजन करने की क्षमता में, जीवन की आदतों में वे असुरों के समान थे।
नागों का उल्लेख बहुत बार मिलता है। लेकिन नाग कौन हैं? नाग को सर्प या सांप के रूप में बताया गया है। क्या यह सच हो सकता है? चाहे यह सच हो या नहीं, यह ऐसा ही है, तथा हिंदू इसमें विश्वास करते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास से पर्दा हटाया जाना चाहिए। इस उद्घाटन के बिना प्राचीन भारत इतिहास - विहीन रह जाएगा। सौभाग्य से बौद्ध साहित्य की मदद से प्राचीन इतिहास को उस मलबे से खोदकर निकाला जा सकता है, जिस मलबे के नीचे ब्राह्मण लेखकों ने पागलपन में उसे दबाकर रख दिया है।
बौद्ध साहित्य से बहुत हद तक मलबा हटाने व उसके नीचे छिपे तत्व बिल्कुल स्पष्ट रूप से देखने में मदद मिलती है।
बौद्ध साहित्य बताता है कि 'देव' मानव समुदाय से थे। बहुत से देव बुद्ध के पास अपनी शंकाओं के समाधान तथा कठिनाइयां दूर करने के लिए आते थे। यदि देव मानव नहीं होते तो ऐसा कैसे हो सकता था? इसके अलावा बौद्धों का प्रामाणिक साहित्य नागों से संबंधित जटिल प्रश्न पर समुचित प्रकाश डालता है। यह कोख से पैदा हुए नाग और अंडे से पैदा हुए नाग में भेद बताता है, और इस प्रकार यह स्पष्ट करता है कि 'नाग' शब्द के दो अर्थ होते हैं। इस शब्द का मूल अर्थ मानव समुदाय के लिए प्रयुक्त हुआ है।
इसके अलावा, असुर भी राक्षस नहीं हैं। वे भी जन विशेष मानव ही हैं। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, असुर सृष्टि के निर्माता प्रजापति के वंशज थे। वे नरक - दूत कैसे बन गए, यह पता ही नहीं है। लेकिन यह तथ्य लिपिबद्ध है कि वे पृथ्वी पर आधिपत्य करने के लिए देवों से लड़े, जिन्हें देवों ने जीत लिया और जिन्हें अंतत: समर्पण करना पड़ा। यह बात स्पष्ट है कि असुर दैत्य नहीं, बल्कि मानव परिवार के सदस्य थे।
मलबे के इस उत्खनन से हम प्राचीन भारतीय इतिहास को एक नव प्रकाश में देख सकते हैं।